Book Title: Yantrapurvak Karmadi Vichar
Author(s): Jain Mahila Mandal
Publisher: Jain Mahila Mandal

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Page 307
________________ [२९७] ६२ मार्गणाए गुणस्थानने आश्री सत्तार्नु विवरण. ध्रुव अध्रुवमा जे १० बंधन बाद कर्या छे, ते दश विना १४८ प्रकृतिनी सत्ता गुणस्थानने आश्रीने नीचे प्रमाणे. २ नरकगति अने देवगति ए बे मार्गणाए ओघे १४८ प्रकृतिनी सत्ता होय. १ मिथ्यात्व गुणस्थाने १४८ नी सत्ता. तथा तीर्थंकर नाम कर्म विना १४७ नी पण सत्ता होय. ३ बीजे अने त्रीजे गुणस्थाने जिन नाम कर्म विना १४७ नी सत्ता होय. ४ अविरति गुणस्थाने क्षायिक समकितीने अनंतानुबंधि ४, समकित मोहनी १, मिश्र मोहनी १, मिथ्यात्व भोहनी १, ए ७ प्रकृति विना १४१ नी तेमज बे आयु विना १३९ नी सत्ता होय. अने उपशम तथा क्षयोपशम समकितीने एक आयु विना १४७ नी सत्ता होय. नारकीने देवतार्नु अने देवताने नारकीर्नु आयु न होय केमके तेनो त्यां बंधज नथी. क्षायिक आश्री तिर्यगायु पण न होय. ३ मनुष्य गति मार्गणाए ओघे १४८ प्रकृतिनी सत्ता होय. ३ पहेलेथी त्रण गुणस्थानक सुधी देवगतिनी मार्गणा प्रमाणे जाणवू. ४ अविरति गुणस्थाने क्षायिक समकिती, अचरम शरीरी, उपशम श्रेणिवाळाने अनंतानुबंधी ४, दर्शन मोहनी ३, ए ७ प्रकृति विना १४१ नी सत्ता होय. तथा क्षपक श्रेणिवाळा चरम शरीरीने नरकायु, तिर्यगायु अने देवायु ए ३ विना १४५ नी होय. अने अनंतानुबंधी ४ तथा दर्शन मोहनी ३ कुल ७ खपावे त्यारे १३८ नी सत्ता होय. उपशम समकिती उपशम श्रेणिवाळाने १४८ नी सत्ता होय. ७ देशविरति, त्रमत्त, अप्रमत्त ए ३ गुणस्थाने उपशमश्रेणि अने क्षपकश्रेणि ___ आश्री चोथा गुणस्थानक प्रमाणे जाणवू. ८ अपूर्वकरण गुणस्थाने ओघे उपशम समकिती उपशमश्रेणिवाळा आश्री अनंतानुबंधी ४, तिर्यगायु १, नरकायु १, ए छ विना १४२ होय. क्षायिक समकितीने उपशमश्रेणि आश्री दर्शन सप्तक विना १४१ मांथी तिर्यगायु १, नर कायु १, ए बे विना १३९ होय. क्षपकश्रेणि आश्री पूर्वे कह्या प्रमाणे १३८ होय. ९ अनिवृत्तिबादर गुणस्थानके प्रथम भागे अपूर्वकरण गुणस्थान प्रमाणे जाणवू. बीजे भागे क्षपकश्रेणिए स्थावर द्विक २, तिथंच द्विक २, नरकद्विक २, आतप

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