Book Title: Yantrapurvak Karmadi Vichar
Author(s): Jain Mahila Mandal
Publisher: Jain Mahila Mandal

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Page 271
________________ 1१८ काययोग १९ पुरुषवेद १४-१५४७ ६६३ १३ शुक्लना ४६ केवली ६६३ पहे. स विना . २४८४०००००१९७५०००० हजार यो० अधिक १४१३ १५२२००००० ९१५०००० हजार योजन४ ९ १५/१२६ अनंतगुणा ३ १०१२ सर्वथी रतो.१] - ९ १५१० २० स्ववेद २१ नपुंसकवेद २२ क्रोध २३ मान २४ माया २५ लोभ २६ मतिज्ञान - - - my My my my my - - mmmmmmm १५२२००००० ९१५०००० हजार योजन ११८००००००१७१५०००० हजार यो. अधिक १४ २४८४०००००१९७५०००० हजार यो. अधिक 1४ २४८४०००००१९७५०००० हजार यो. अधिक १४ २४८४०००००१९७५०००० हजार यो. अधिक १४ २४८४०००००१९७५०००० हजार यो. अधिक १४ ।। सम १६२६०००००११६५००००१००० योजन २ कित ३२००००० १३१२ संख्यातगुण २ १५/१२ अनंतगुण ३ बिशेषाधिक १५१० ६ सस्तोक १ १५१० ६ विशेषाधिक ३|| १५१०६ १० ६६१ १४ शुक्लन। ४६ त्रीगचोथा पायाविना २७ श्रुतज्ञान १६२६०००००११६५००००१००० योजन [२६१] २८ अवधिज्ञान १६२६०००००११६५००००१००० योजन ७. असं० गुण २ २९ मनःपयवज्ञान धर्मना४४ ६ १ १४००००० १२०००००५०० धनुष्य १३७६ सर्वस्तोक १ शुक्लना २, ९ आना ३ सहित ३.केवलज्ञान २शुक्लन १ केवळी ६१वज्र १,११४००००० १२०००००५०० धनुष्य- १ २ ७२१ अनंतगणा ८ ३१ मतिज्ञान (छेल्दा ४५कवकी६ २ २४८४००००० १९७५०००० हजार यो.अ २४८४००००० १९७५०००० हजार यो० अधिक 1४३- २१३५ तथा आ हारकधिना ३२ श्रुतअज्ञान ८ ४ ५ ,६६२ २४/८४०००००१९७५०००० हजार यो० अधिक १४ ३३/वभंगज्ञान ८ . ४ ५ ,६६२ २४२६०००००११६५००००हजार योजन ३-४ १३५६ असं० गुणा५ ४पामायिक धर्मना४४ केवळी ६६१ सम-११४००००० १२०००००५०० धनुष १ १३७ संख्यात गुण ५ चारित्र शुक्ल १, विना कित ८ आता ३ सहित ३५ छेदोपस्थाप.५-८ ,, ४६ ६ ६ १ ०० १२ ००५०० धनुष्य । नीय -:

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