Book Title: Yantrapurvak Karmadi Vichar
Author(s): Jain Mahila Mandal
Publisher: Jain Mahila Mandal

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Page 298
________________ मागेणा कायश्थिति ज्ञानावरणीय दर्शनावरणीवना वेदनीयना भंग ८ आयुना भंग २८ गोत्रकर्मना अंतराय कर्मना M ait : भग २ भंग ११-११ : भांगा : भांगा २ T जन्यः-: उत्कृष्ट ११-१३ ११.१३ ४७ कापोतलेश्या अंतर्मुहर्त-१० सामसेकम, पल्योपमनो असं-१ ख्यातमो भाग अधिक: - ४८ तेजोलेश्या अंतमेहर्त-२ सागपम, पल्योपमनो असंख्या-१ तमो भाग अधिक... ४९पछलेझ्या ... अंतर्महर्त-१० सागगेपम अंतर्मुहूर्त अधिक १ ५० शुक्ललेश्या । अंतर्मुहूर्त-३३ सागरोपम साधिक अनादि अनंत, अनादि सांत ५२ अभव्य अनादि अनंत ५३ उपशम सम्यक्त्व अंतमहूते-अंतमुहते ... ५४क्षयोपशम स० अंतर्मुहूर्त -६६ सागरोपम साधिक २५/क्षायिक स. सादि अनंत...... ५६ मिश्र सम्यक्त्व अंतहूर्त-अंतमुहूते । ५७ सास्वादनस० एक समय छ. आवली ५८ मिथ्यात्व अंतर्मुहूत-अभव्य आश्री अनादि अनंत, भव्य १ आश्री अनादि मांत.... ५९ संजी... अंतर्मुहूर्त-१०० पृथक्त्व सागरोपम साधिक २ ६. असंज्ञी... अंतमहस-अनंत काळ वनस्पति आश्री। ६. आहाशी अंतमुईत असंख्यात काळ . ६२ अनाहारी एक समय-अनंत काक, एक सिद्ध आश्री १. सादि अनंत Firrao r. འ འོ ་ ཏེ ཀོ ན བ ན བ ན ་ ་ ་ [२८] rma xxx.mar ११-१३ ११-१३ ४

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