Book Title: Yantrapurvak Karmadi Vichar
Author(s): Jain Mahila Mandal
Publisher: Jain Mahila Mandal

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Page 297
________________ १३ पान -00 ७-८ .... ७-८ .. २ . ९-११ ९-११ ९-११ . अंतर्मुहूर्त-अंतर्महूर्त अंत-हूर्त-अंतर्भहर्तृ अंतर्मुहूर्त-अंतमुहूर्त एक समय-अंतर्मुहूर्त अंतर्महर्त-६६ सागगेपम साधिक - अंतर्मुहूर्त -६६ सागरोपम ,, एक समय-६६ सागरोपम एक समय-देशे ऊन पूर्वकोटी सादि अनंत काळ-अनादि अनंत काळ अंत हुर्त अनंतकाळ अंतर्मुहूर्त-अनंतकाळ एक समय-३३ सागगेपम अधिक अंतर्मुहूर्त देशे ऊन पूर्वकोटी अंतर्मुहूर्त-देशे ऊन पूर्वकोटी ९-११ .. २४ गया २५ नोभ R६ मतिज्ञान २७ श्रुतज्ञान २८ अवधिज्ञान २९ मनःपर्यवज्ञान ३० केवळज्ञान ३१मतिअज्ञान ३२ श्रुतअज्ञान ३३ विभंगज्ञान ३४ सामायिक चारित्र ३५ छेदोपस्थाप . ------- 0000 . [९८७] नीय, . . . mmon 0 -१३ 5 ३६)परिहारवि- १८ मास ३७..... शुद्धि ,, एक समय३८ सूक्ष्मसंपगय ,, एक समय देशे ऊन पूर्वकोटी ३९ यथाख्यात , अतर्मुहूर्त-देशे ऊन पूर्वकोटी ४.देशविरति अंतर्मुहूर्व-अनंतकाळ ४१ अविरति अंतर्मुहूर्त-हजार सागगेपम साधिक ४२ चक्षुदर्शन अभव्य आश्री अनादि अनंत तथा भव्य आश्री२ | अचक्षुदर्शन अनादि सांत ४३ अवधिदर्शन एक समय-६६ सागगेषम साधिक २ ४४ केबलदर्शन एक जीव आश्री सादि अनंत सर्व जीव आश्री, अनादि अनंत ४५)कृष्णलेश्या अंतर्महर्त-३३ सागरोपम अंतर्मुहूर्त अधिक १ ४६नीललेश्या अंतर्महर्त-१० सागरोपम, पल्योपमनो असं-१ ख्यातमो भाग अधिक ११-१३ ९-११ .. --

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