Book Title: Yantrapurvak Karmadi Vichar
Author(s): Jain Mahila Mandal
Publisher: Jain Mahila Mandal

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Page 277
________________ अध्रुव- पगवते बंध प्रकृति प्रकृति बंध प्रकृतिबंध प्रकृतिबंध शनावग्णी वेदनीय प्र- माहनीय आयुकाः पुण्यबंध पापबंध ध्रुवबंध प्रकृति प्रकृति प्रकृति नामक अपरावर्त ज्ञ नावरणी दर्शनावग्णी वेदनीय प्र प्रकृतिबंध प्रकृतिबंध पक्रतिबंध प्रकृतिबंध ९ कृतिबंध २ मार्गणा अंतराय कृतिबंध २ | बंध ५ गोत्रकर्म प्र-कर्मप्रकृति ४२८२ ७३ १ नरकगति २ देवगति ३ मनुष्यगति ४तियचगति ५एकेंद्रिय :. . . . . . . م . م .00 0.00 0.00 0. [२६७] 00000000000$$$$50550065 . مه مه کمک ७त्रीन्द्रिय ८ चतुरिन्द्रिय ३४ ९ पंचेंद्रिय १० पृथ्वीकाय ३४ ११ अप्काय १२ तेजस्काय १३ वायुकाय १४ वनस्पतिकाय १५ त्रसकाय १६ मनोयोग १७वचनयोग १८ काययोग १९ पुरुषवेद २० स्त्रीवेद २१ नपुंसकवेद २२ क्रोध २३मान २४ माया २५ लोभ 0 0.00 ۔ تمہ تمہ تمہ ت :. کلمہ کی کہ .00 0 ४

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