Book Title: Yantrapurvak Karmadi Vichar
Author(s): Jain Mahila Mandal
Publisher: Jain Mahila Mandal

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Page 221
________________ [२११] पछी त्रण करण दरेक अंतर्मुहूर्त प्रमाणना करे. १ यथाप्रवृत्ति करण, २ अपूर्व करण, ३ अनिवृत्ति करण. पछी ४ थो उपशांत काळ. तेमां प्रथम यथाप्रवृत्ति करणमा प्रतिसमये अनंतगुण वृद्धि पामती विशुद्धि युक्त प्रवेश करे. अने उपर प्रमाणे शुभ प्रकृतिना बंधादिक करे. परंतु स्थितिघात, रसवातादिक तथाप्रकारनी विशुद्धि न होवाथी न करे. प्रतिसमय घणा जीवनी अपेक्षाए असंख्येय लोकाकाशना प्रदेश प्रमाण अध्यवसाय स्थानक लाभे. ते दरेक स्थानकमां पण छठाणवडीया होय. वळी पहेला समयना अध्यवसाय स्थानक करतां बीजा समयना अध्यवसाय स्थानक विशेषाधिक होय. एमां त्यां सुधी समजवू के ज्यां सुधी यथाप्रवृत्ति करणनो चरम समय आवे. तेमां पण प्रथम समये जघन्य विशुद्धि सौथी थोडी. बीजे समये जधन्य विशुद्धि अनंतगुणी. त्रीजे समये जघन्य विशुद्धि तेथी अनंतगुणी. ए प्रमाणे यथाप्रवृत्ति करणना काळनो संख्यातमो भाग जतां सुधी समजवं. त्या र पछी तेना करतां पहेले समये उत्कृष्ट विशुद्धि अनंतगुणी. तेनाथी पूर्वे निवर्तेली जवन्य विशुद्धिनी पछीनी जघन्य विशुद्धि अनंतगुणी. तेनाथी बीजा समयनी उत्कृष्ट विशुद्धि. अनंतगुणी. तेथी वळी उपली पछीनी जघन्य विशुद्धि अनंतगुणी. एम यथाप्रवृत्ति करणना चरम समये जघन्य विशुद्धि अनंतगुणी कहेवो. पछी जेटला उत्कृष्ट विशुद्धि स्थान रह्या, त्यां अनंत अनंतगुणी विशुद्धि प्रतिसमये कहेवी. ते यथाप्रवृतिना चरम समय सुधी. आ प्रमाणे पहेलु करण समजवू हवे बीजुं अपूर्वकरण कहे छे.तेमां प्रत्तिसमये असंख्य लोकाकाशना प्रदेशप्रमाण अध्यवसाय स्थान जाणवां. तेमां पण प्रतिसमये छठाणवडीया जाणवा. तेमां प्रथम समये जघन्य विशुद्धि सर्वथी थोडी. पण यथाप्रवृत्ति करणना चरम समयना उत्कृष्ट विशुद्धि सर्वथी थोडी. पण यथाप्रवृत्ति करणना चरम समयना उत्कृष्ट विशुद्धि स्थानथी अनंतगुणी. ते पहेला समयनी जघन्य विशुद्धिथी पहेला समयनी उत्कृष्ट विशुद्धि अनंतगुणी. तेनाथी बीजा समयनी जघन्य विशुद्धि अनंतगुणी. तेनाथी बीजा समयनी उत्कृष्ट विशुद्धि अनंतगुणी. एम प्रतिसमये जघन्य अने उत्कृष्ट विशुद्धि अनंतगुणी अपूर्वकरण ना चरम समय सुधी जाणवी. आ अपूर्वकरणना प्रथम समयथी १ स्थितिघात, २ रसघात, ३ गुणश्रेणि,

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