Book Title: Yantrapurvak Karmadi Vichar
Author(s): Jain Mahila Mandal
Publisher: Jain Mahila Mandal

Previous | Next

Page 246
________________ . . . | यथाख्यात ३८ देशविरति देशविरत १३ ३९ अविरति मिथ्यात्व २२ सास्वादन २१ मिश्र १७ अविरत १५ ५७६ ८ चो. १९२ ५२ १२४८ ५।६।७८१३१३।१चो.८ - २४।७२।७२।२४ १९२ ५।१८।२१।८ ५२ १२०१४३२१५०४।१९२ १२४८ १२५ २४ चो. ६७1८1९1१. १।३।३।१चो .८ २४/७२।७२।२४ १९२ ७२४/२७४१०६८ १६८१५७६१६४८२४० १६३२॥ ४ ८९ ११२।१ २४।४८।२४९६७ ।१६। ९ ३२ १६८१३८४१२१६ ७६८ ७८९१/२।१ २४।४८।२४ ९६ १६९३२ १६८१३८४२१६ ६७१८९१३१३१ ८ २ ४१७२१७२१२४ १९२६।२१।२४॥९६० १४४५०४।५७६।११६ १४४० ४२ चक्षुदर्शन अचक्षुदर्शन मनुष्यगतिप्रमाणे |४३ अवधिदर्शन अवधिज्ञानप्रमाणे ४४ केवळदर्शन ४९ कृष्ण,नील, कापोत, ते जो, पद्म लेझ्या मिथ्यात्व २२ ४. चो. २८८ २४/७२७२।२४ १९२४२४१२४१०६८ (६९१२/ [२३६] ६७८1९/१० ११३१३११ १६८1५१६६४८१२४० १६३२॥ चो. सात १७ साग्वादन २१ । ४७८९ १।२।१ २४|४८।२४९६ १६९ ३२ १६८।३८४।२१६ मिश्र १७ १।२।१ २४/४८।२४९६ १६९ १६८।३८४१२१६ अविरत ६७८९ ११३१३११ २४/७२।७२।२४ १९२६।२१।२४।९ १४४/५०४।५७६।२१६ १४४० देशविरत् १३ २ ५।६।७८ १।३।३.१ २४।७२१७२१२४ १९२ ५।१८।२१।८ (१२०१४३२।५०४।१९२ १२४८ प्रमत्त । २४।५।६७१।३।३।१ २४।७२।७२।२४ १९२।१५।२८७ ९६।३६०१४३२।१६८ १०५६ ५१ शुमलेश्य भव्यमनुष्यगतिप्रमाणे ५२ अभव्य मिथ्यात्व २२ ६८।९।१०१२। १ ४ २४॥४८।२४ . ९६८१८१०३६ १९२१४३२।२४० ५४ उपशम स म्यक्त्व, क्षायिक सम्यक्त्व २३ भां. ३११ । ७२ अविरत १७ २६८१२११ चो. ४ चो. २४॥४८॥२४९६६।१४। ८ २८ (१४४।३३६।१९२६७२ । १२ चो.

Loading...

Page Navigation
1 ... 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312