Book Title: Yantrapurvak Karmadi Vichar
Author(s): Jain Mahila Mandal
Publisher: Jain Mahila Mandal

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Page 243
________________ 047 - ३५२ १५त्रसकाय मनुष्यगतिप्रमाणे १६मन्योग मनुष्यगतिप्रमाणे १७वचनयोग मनुष्यगतिप्रमाणे |१८ काययोग १९ पुरुषवेद २० स्त्रीवेद २१ नपुंसकवेद १७८ ४ भां. २८८ २३१२ मिथ्यात्व २२ ६ ८।९।१०१ ।३।३।१ अ. ८ ८।२४।२४३८६४२४।२७४१०६८५६।१९२।२१६१८० ५४४ सास्वादन ७८९१।२१ ४ ८।१६८३२ १६१९३२ ५६।१२८।७२ २५६ मिश्र.अ. विरत १७२ ६७८९ १।४।५।२ ८।३२।४०।१६ ४८।२२४।३२०।१४४ ७३६ देशविरत १३२५।६।७८१ ।३।३।१ ८।२४।२४।८ ६४५।१८।२१।८ ५२ ४०11४४।१६८१६४४१६ प्रमत्त अ ग्मत्त-निवृत्ति २ ४।५।६७ १०३।३।१ ८ ८२४।२४।८ ६४४।१५।२८१७४४२११२०११४४:५६ भनिवृत्ति ५ भांगा ४ . भांगा ४ ४ ४० षष्टक २२ क्रोध ४ भां. २८८ मिथ्यात्व २२ ७८९।१०१।३।३।१ षष्टक ८ ६।१८।१८१६४८ ७/२४।२७४१०६८ . ४२११४४/१६२।६०४०८ सास्वादन २१ ७८९ १।२।१ ६।१२।६ २४ ।१६। ९ ३२ ४२१९६१५४ १९२ मिश्र-अविरत १७२ ६७८९ १।४।५।२ ६।२४।३०।१२ २ ६२८१४०1१८९२३६१६८२४०1१०८५१२ देशविरत १३२ ५।६।७८ १।३।३।१ દા૧૮૧૮૬ ४८ ५।१८।२१।८ ५२ ३०।१०८।१२६।४८ ३१२ प्रमत्त-अ ४।५।६।७ १।३।३।१ ६।१८।१८। ६ ४८४।१५।१८१७४४२४१९०११०८१४२२६४ प्रमत-निवृत्ति वात्त ९२ अनिवृत्ति ५ ३ भांगा भां. ३ अनिवृत्ति ४११ १ भां. १ भां. २२मान क्रोधमार्गणाप्रमाणे. विशेष ए के अनिवृत्ति गुणस्थानना श्रीजा भागे त्रण- बंधस्थान होय. तेनो भांगो एक. उदयस्थान एक तेनो भांगो एक. ! उदयभंग एक, उदयपद एक भने पदवृंद एक होय छे तेथी करीने कुल बंधस्थान विगैरे नीचेप्रमाणे जाणधुं. ८ १९ ९ ४. ष. १७३६॥ . .. ५ भां.. [२३३] / .

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