Book Title: Yadusundara Mahakavya
Author(s): Padmasundar, D P Raval
Publisher: L D Indology Ahmedabad
View full book text
________________
१२४
पद्मसुन्दरसूरिविरचित
अन्यः स्फुटस्फटिकचत्वरसंस्थिताया
स्तन्व्या वरानमनुबिम्बितमीक्षमाणः । सामाजिकेषु नयनाञ्चलसूचनेन
सांहासिनं स्फुटमचीकरदच्छहासः ॥३७।।
काचिन्निरीक्ष्य तरुणं तरुणी निजालि--
मालिङ्ग्य गाढभुजबन्धनमण्डलेन । आचष्ट सम्मुखमभीककलाभृतं तो
सा स्पृष्टकस्फुटविचेष्टितमेव रागात् ।।३८।।
तत्तत्कटाक्षतरलेक्षणभावहाव
हेलाविलासमृदुवाम्भवभङ्गिरजैः । यूनोमियो मुदिह सा समभून्न यत्र
सञ्चारिका परिचयप्रणयप्रचारः ॥३९।।
बद्धाञ्जलिः खलु खलोऽथ पिपासुरम्भः
क्षिप्तं कयाऽपि पिबति स्म न चास्यमस्याः । तत्तत्प्रतिप्रतिमितं प्रसमीक्ष्य चुम्ब--
न्नाह स्म चुकृतिरवेण तदाप्तिभिक्षाम् ।।४।।
ते वारयात्रिकजना ललनाविलास
स्यावच्छटाः शुचिरसप्रभवा निपीय । आवेशनं रतिपतेर्नलतन्तुनद्ध
वीतंसवद्धनभसङ्गमतामिवापुः ॥४१॥
वैडूर्यवज्रखचितेषु हिरण्मयेषु
पात्रेष्वभित्तकणमच्छमभोजि भक्तम् । जन्यैः सबाष्पमथ मार्दवताधुरीण
सन्माधुरीपरिणतं परिपाकिम तैः ॥४२।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206