Book Title: Yadusundara Mahakavya
Author(s): Padmasundar, D P Raval
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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१३८
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पद्मसुन्दरसूरिविरचित
मृगयते मृगतृष्णिकया मृग
स्तरलितो ललितोदकपल्वलम् । इह हि फुल्लति मल्लिमतल्लिका
पटु पपाट न पाटलमत्र किम् ॥४३॥
अथ घनाघनगर्जितमूज्जितं
कृतकलाऽपि कलापिकलस्वरम् ।
अयि ! निभालय भालयमायुधं
सुरविभो रविभोदितमम्बरे ॥४४॥
अयि । तडित्तनुतेऽतनुतेजनं
घनघनान्तरितः परितः शशी ।
सकमलानि मलानि दधुस्तरां
किल सरांसि परां शितितां क्वचित् ॥४५॥
सकलहं कलहंसततिः समा
नयदमानममानससंश्रयम् ।
किमु न केतकमेत कमीक्षसे
सुतनु ! सौरभ सौरभ सौरसम् ॥४६॥
अयि ! कदम्बकदम्बमुदञ्चति
स्फुटसुमानि सुमानि निधारयत् ।
सुमनसां मनसामिव सन्तति
॥ ग्रीष्मवर्णनम् ॥
र्न सुमनाः सुमनाशमिता सिता ||४७ ||
किमु समीरसमीरणझाकृति
स्वनवशंकर सङ्करशीकरः ।
स विससार ससारसनिम्नगा
तटमटत्पटहध्वनिडम्बरः ||४८||
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