Book Title: Yadusundara Mahakavya
Author(s): Padmasundar, D P Raval
Publisher: L D Indology Ahmedabad
View full book text
________________
यदुसुन्दरमहाकाव्य
१३७
सपुलका पुलकाकुलकामिनी
कलितदोलनदोलितदोलया । ननु विभाति विभाऽतिभरादियं गहनभूरणुभूरिविभूतिभिः ॥३७॥
॥सुरभिवर्णनम् ।। अयि ! पिपर्नु तपतुरुपागत
स्तव मनोजमनोरथमद्भुतः । सजलजां जलजां किल शीतता
मतितरां स्पृहया स्पृहयालुकः ॥३८॥ वहति वारि कृशं नु भृशं कृशा
- दयितवर्षणवर्षवियोगिनी । सुनलिनी मलिनीकृतवारिभिः
खगकुलैबकुलैः सवनीधुनी ॥३९॥
न पथिकः पथिकी पथि रागिणीं
स्पृहयतीह विलोलविलोचनाम् । प्रतपनात्तपनस्य पनायितां
गिरमुदारमुदा न वदोऽवदत् ।।४।।
कृतविशालरसालदलस्थिति
मधुकरी न करीरमरीरमत् । न भुजगी भुजगीकृततच्छविः
स्पृशति वहिणवहंगतोरगम् ।।४।।
न च शिरो द्वयसन्द्वयसङ्गत
स्त्यजति तज्जनिमज्जनसज्जनः । वनगजो नगजो नगयोनिज
___ जलमलं सरसीः परिशीलयन् ॥४२॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206