Book Title: Yadusundara Mahakavya
Author(s): Padmasundar, D P Raval
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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पन्नसुन्दरसूरिविरचित
शौरिणा निजशरासनमुक्तै
राशुगैरकृतमण्डपमुच्चैः । स्वीयकीर्तिलतिकोस्थितिहेतो
विस्तृतं वियति लब्धवितानम् ॥३७॥
सादिनि प्रतिभटे युधि सादी
__ स्याद्रथी युधि यदू रथिरोऽसौ । पादचारिणि च पादविहारी
न्यायचञ्चुरकरोन्नययुद्धम् ।।३८।।
वाजिपत्तिरथकुम्भिबलानां
___ वल्गतामिह बलादुभयेषाम् । प्रोच्छलद्बहुलधूलिवर्ते
भूरुपागतवती दिवि मन्ये ॥३९।।
द्राग्दिवाकरपरासनदक्षोऽ
थादधच्चरणडम्बरमुच्चैः । वारिसंवृतिधरः परसैन्यं
गाहते यदुबलस्य करेणुः ।।४०॥ ।। वर्णच्युतकम् ।।
कोशव्यकौशसम्बन्ध
मलीमसहृदाविलम् । बद्धमुष्टिं सदादाने
कृपणं कोऽत्र नाश्रितः ।।४१।। ।। मात्राच्युतकम् ।।
घृतकुन्ततोमरकृपाणा भासुरा
ततपत्रिचञ्चुपुटकोटिकुट्टना । कृतवीरपानवरवीरविक्रमा
किल राजति स्म समिदुभटैर्भटेः ॥४२॥
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