Book Title: Yadusundara Mahakavya
Author(s): Padmasundar, D P Raval
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 172
________________ यदुसुन्दर महाकाव्य इह नन्दिनीवृत्ते प्रतिपादमाद्याक्षरद्वयपाते रथोद्धतावृत्तेन समरवर्णनम् ।। वर्णद्वयच्युतकम् ।। वृत्तद्वयश्लेषश्च ॥ लसत्कटकता तीक्ष्णा करजावलिवद्घना | राजत्याजीरजोराजी धूसरश्रियमाश्रिता ॥४३॥ ।। इह कण्टककरपादाब्दिन्दुच्युतकम् ॥ कुः काङ्ककङ्ककैकाकि काकिकाककुकैकिका | काकाङ्ककककाकाक ककाकुः कङ्ककाकका ||४४ || || एक व्यञ्जनचित्रम् । काकोलकालकङ्काल कीलालालककाकुला । कुः कालिका ललल्लोलेs Jain Education International लीका कलकलाकला | ४५|| || द्वयक्षरचित्रम् ! | स्वक्षुरप्रविशिखैरपि कस्य छत्रमन्यनृपतेस्तु पताकाम् | चिच्छिदे यदुरथान्यतरेषा मग्रहीन्मुकुटकुण्डलभूषाम् ॥४६॥ कोऽपि खड्गलतया निजकण्ठं लोठितं वरणदामवृतं च । अप्सरोभिरभितो मुदिताभि दिव्यपश्यदिह दिव्यशरीरः ॥४७॥ सङ्गता दिविजता दिवि नादं दुन्दुभेः सुरतरुप्रसवानाम् । वर्षणं कृतवती जितशत्रो मूर्ध्नि यादवपतेरुपरिष्टात् ॥४८॥ For Private & Personal Use Only १५१ www.jainelibrary.org

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