Book Title: Yadusundara Mahakavya
Author(s): Padmasundar, D P Raval
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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१५८
पनसुन्दरसूरिविरचित पूःस्त्रियोऽथ कनकाऽऽननाम्बुजं
लोललोचनशिलीमुखं मुहुः । स्वं निनिन्दुरुपनम्रकन्धरा
वीक्ष्य रूपगुणरामणीयकम् ॥१३॥
सा वधूः पुरपुरंध्रिलोचन
श्रीमसारमणिमण्डिता भृशम् । तां कनकनककान्तिभास्वरां
- भासते स्म दधती तनुं तनुम् ॥१४।।
यादवः कुसुममाल्यशेखरो
मुग्धमूर्द्धधृतधर्मवारणः । चारुचामरवितानवीजितो
__बन्दिवृन्दवचनोपबृंहितः ।।१५।।
सृष्टमङ्गलविधि
__वाद्यमङ्गलनिनादवद्धितः । जायया सह जयेति शंसितोऽ
- भंलिहं स निजसौधमाविशत् ॥१६॥
तच्च निष्कुटतटस्फुटस्फुट
ज्जातिकोरकविसारिसौरभम् । मेचकागुरुजधूपधूमतो
द्गारिगर्भगृहजालजालकम् ॥१७॥
तत्क्वचिन्मृगमदागरुद्रव
च्चन्द्रचन्दनजपक्कसङ्करम् । क्वापि कुन्दकुरुविन्दमालिका
मेलकाञ्चितसचित्रभित्तिकम् ॥१८॥
पकसकरम् ।
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