Book Title: Yadusundara Mahakavya
Author(s): Padmasundar, D P Raval
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 169
________________ १४८ पदमसुन्दरमरिविरचित अस्मकास्वहह सत्सु महत्सु क्षुद्र एष किमु राजसुतार्हः । वारलाऽर्हति मरालविलासा-- वच्छटो बलिभुजा न परीष्टिम् ॥२५॥ द्राक्तदेनमुपमृद्य बलेना च्छिद्यतां वयमुरीकराम । चक्रिरे प्रतिघदष्टनिजोष्ठा स्तद्वधोद्यममिति प्रवितयं ॥२६॥ अत्यहं किमु करग्रहकृत्यं स्यादिति प्रणिगदन्नृपवर्गः । सम्मिमेल परिवाह इवाब्धौ __ यादवप्रशमने हदिनीनाम् ।।२७।। तत्पदं जगति गन्तुमशक्ता दुर्जना हि महतामवहेलाम् । तन्वते द्युतिपतेरिव धाम्नां तामसद्विजकुलान्यमलानाम् ॥२८॥ सत्कलावति जगज्जननेत्रा नन्दने धवलयत्यपि विश्वम् । पूर्णिमाशशिनि सूचकदृष्टि लाञ्छनं पटुतया विवृणोति ॥२९।। मोदते शुकगिरा न बिडालो नो हरिमंगमदेन मृगस्य । ताण्डवेन शिखिनो मृगयु! किं गुणैः खलु खलस्य शससेः ॥३०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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