Book Title: Yadusundara Mahakavya
Author(s): Padmasundar, D P Raval
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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।। नवमः सर्गः।।
प्रान्तरेऽथ शुचिपुष्परथस्थौ
दम्पती दधतुरद्भुतशोभाम् । प्रावृषेण्यशरदभ्रकदम्बे
शकचापतडिताविव किं तौ ।।१।।
आननश्रियमपीयत दृग्भ्यां
नासया श्वसनसौरभमस्याः । अङ्गः सपुलकैर्नु तदङ्गा
वच्छटालवणिमानमजस्रम् ॥२॥
विप्रकृष्टचलचक्रतुरङ्गा
स्कन्दितोद्धतरजःकणराजी । निःपतन्त्यरुचदस्य शरीरे
चूर्णमुष्टिरिव दिग्वनितानाम् ।।३।।
सान्त्वनैर्वरयितुर्बत तस्या
मातृजो विरहवाडववह्निः ।। रुच्यरागजलधौ हृदि शोक
ज्वालजालजटिलो न शशाम ॥४॥
आधिवल्लिलवनाय सुदत्याः
शौरिरप्युपचचार चटूक्तैः । किं न चन्द्रमृगनाभिसगर्भ
दृक्त्रिभागमनुकम्प्य ददासि ॥५।।
सारसस्य मिथुनं सरसस्तत्
सारसाक्षि ! मनु पश्य तटस्थम् । एकपद्मबिसभुक्तिमिषेण
द्वन्द्वरागमिव वक्ति भवस्याः ॥६॥
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