Book Title: Visheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan Author(s): Pavankumar Jain Publisher: Jaynarayan Vyas Vishvavidyalay View full book textPage 8
________________ (v) जिससे मेरा शोध कार्य अनवरत गतिमान रहा, अतः पूज्यश्री को भाव पूर्वक वंदन करते हुए श्रद्धापूर्वक कृतज्ञता प्रकट करता हूँ। परमादरणीय गुरुजी श्री लक्ष्मीलाल दक-नई दिल्ली, जिन्होंने मुझे शोध-कार्य के लिए प्रेरित किया, उनकी प्रबल प्रेरणा से मैं इस कार्य को सम्पन्न कर सका हूँ। इस शोधकार्य की सम्पन्नता में मुझे देश के विभिन्न प्रतिष्ठित विद्वानों एवं प्राज्ञ पुरुषों का भी मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। उस क्रम में डॉ. सागरमलजी जैन-शाजापुर (म. प्र.) पं. कन्हैयालालजी लोढ़ा-जयपुर, श्री पारसमलजी संचेती-जोधपुर, श्री नेमीचन्दजी बांठिया-ब्यावर, श्री पारसमलजी चण्डालिया- ब्यावर, श्री रमेशजी पटवारी-चौमहला, श्री टीकमजी जैन-शिंदखेडा, डॉ राजकुमारीजी जैन-अजमेर, डॉ. श्वेताजी जैन-जोधपुर, डॉ. हेमलताजी जैन-जोधपुर आदि के प्रति में विनम्र आभारी हूँ जिनका समय-समय पर परामर्श और सहयोग निरन्तर मिलता रहा है। श्री सुधर्म विद्यापीठ-जोधपुर के संचालक श्री मदनजी बालड-जोधपुर, श्री सुशीलजी बालड़-जोधपुर एवं प्रभारी श्री जबरमलजी हरणफाल-मुम्बई का सहयोग भी अविस्मरणीय है। श्री अखिल भारतीय शोध ग्रन्थालय-जोधपुर, सेवा मन्दिर धार्मिक शोध पुस्तकालयजोधपुर एवं जैन ई-लाईब्रेरी आदि से गृहीत पुस्तकों से मेरे शोध-प्रबन्ध का कार्य सम्पन्न हो सका है, एतदर्थ इनके व्यवस्थापकों के सहयोग से मैं अनुगृहीत हूँ एवं इनका आभार स्वीकार करता हूँ। शोध कार्य को पूर्ण करने में आर्थिक दृष्टि से श्री विनयकुमारजी सा. जैन-जोधपुर का विशेष सहयोग रहा है, जिनका मैं हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ। इस अवसर पर मैं अपने पूज्य माता-पिता श्रीमती मनोरमा-श्री पुखराजमलजी कचोलिया की हृदय से चरण वन्दना करता हूँ, जिनके आशीर्वाद से यह कार्य सम्पन्न हो रहा है। साथ ही मेरे अग्रज श्री देवेन्द्रकुमारजी एवं श्री राजेन्द्रकुमारजी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ, जिनके कारण मैं अध्ययनेतर बाधाओं से मुक्त रहा हूँ। मेरे इस दीर्घकालिक शोधकार्य को पूर्ण करने के लिए मैं अपनी धर्मपत्नी ऋतु जैन के अनवरत और अथक सहयोग के लिए धन्यवाद देकर उसके महत्व को कम नहीं करना चाहता हूँ। ऋतु ने पारिवारिक जटिलताओं और साधनाभावजन्य संकटों का धैर्यपूर्वक सामना करते हुए शोध प्रबन्ध के टंकण तथा प्रूफ रीडिंग में पूरा सहयोग किया, जिससे मेरा शोध कार्य अनवरत गतिमान रहा, जो अत्यन्त प्रशंसनीय और सराहनीय है। सुपुत्र काव्य कचोलिया का यही सहयोग रहा कि उस बालमन ने शोध-प्रबन्ध से सम्बन्धित पुस्तक एवं कागज को बिना पूछे इधर-उधर नहीं किया। अत: उसको मेरा बहुत-बहुत आशीर्वाद है। मेरे सुहृत् श्री पंकजजी चोरडिया-जोधपुर के वांछित एवं प्रशंसनीय सहयोग के लिए हृदय से आभारी हूँ। अन्त में मैं उन सभी गुरुजनों, विद्वानों एवं मित्रों के प्रति भी हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ, जिनका उल्लेख यहाँ नहीं हो पाया, किन्तु उनका प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध के लेखन कार्य में सहयोग प्राप्त रहा है। - पवन कुमार जैनPage Navigation
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