Book Title: Veer Ekadash Gandhar Puja
Author(s): Vijayvallabhsuri
Publisher: Granth Bhandar

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ ( १४ ) २ दूसरा पत्र–श्री आत्मानन्द जैन श्वेताम्बर गुरुकुल श्री गुजरानवाला ( पंजाब ) इस पते पर आया जिसकी नकल वीर संवत् २४५१ ॥ ॥ श्री ॥ प्रतापगढ ( राजपूताना ) विक्रम संवत् १९८१ फागनवदि १२ शुक्र ता. २०-२-१९२५ पूज्यवर्य जैनाचार्य श्री श्री श्री १०८ विजयवल्लभ सूरीश्वरजी महाराज साहेब की परम पवित्र सेवामें मु. गुजरानवाला ( पंजाब ) सविनय हार्दिक विधि वंदना स्वीकृत हो विनति विशेष-प्रथम कार्ड समर्पण किया वो मिला ही होगा यहाँ श्री चंद्रप्रभ भगवान् ( गुमानजीका मंदिर ) में एक चोक विशाल जिसके मध्यमें एक छत्री जिसमें गौतमस्वामी आदि ११ गणधरों के चरणपादुका । यहाँके श्रावक लोग जानते नहीं थे। जब शांत मूर्ति पूज्य श्रीमान हंसविजयजी महाराज यहा पधारे थे तब महाराज साहबने निरीक्षण किया तो ११ गणधरों के चरण पादुका कमल पुष्प आकार के मालूम हुए. जबसे गणधरों की पूजा होने लगी । आपसे विनति यह है कि श्रीगौतमस्वामी को आद लेकर ११ गण धरोंकी पूजा विविध राग रागणीमें हिन्दीकी रचना की जावे तो बड़ा लाभका कारण है । पूज्य श्रीमान् हंसविजयजी महाराज साहबको लिखा तो उत्तरमें आपके लिये फर्माया इसलिये सादर विज्ञप्ति है कि इस कार्यको जितना जलदी पूर्ण करेंगे उतनाही श्रेष्ठ है। दीवाके एक माह प्रथम छपके जाहिर हो जाना अति लाभका कारण है । आप आचार्य महा कवि हैं इसलिये मुझे दृढ खात्री है कि मेरी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42