Book Title: Veer Ekadash Gandhar Puja
Author(s): Vijayvallabhsuri
Publisher: Granth Bhandar

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Page 10
________________ ( १२ ) गृहस्थ इस कमीको दूर करनेका बीड़ा उठायगा ? धन्य वह दिन आयगा फिर ग्राम ग्राम नगर नगर और देश देशमें पंडित जैन गृहस्थ और जैन साधु मुनिराज दिखलाई देवेंगे । सज्जनो जैन समाजकी आधुनिक दशासे दुःखित हृदय होकर इतना लिखा है आशा है मेरी पृष्ठताको माफ करके हंसचंचू होकर गुणग्राही बनकर मेरी तरह जैनसमाजकी अवनत दशा पर दो बूँदें डाल कर जैनसमाजकी उन्नति के लिये कटिबद्ध हो जायँगे । इतनी आप सज्जनोंसे प्रार्थना करके अब मैं अपना प्रस्तुत विषय बतलाऊँगा और क्षमाका प्रार्थी होकर अपनी लेखिनीको बंद कर दूँगा । आपको यह तो बखूबी रोशन हो गया कि जैन समाजमें आजकल विद्याका -हास हो गया है इसी लिए क्या गृहस्थ और क्या साधु प्रायः सबके सब संस्कृत प्राकृतके अनभिज्ञ होनेसे भाषाको ही पसंद करते हैं । यही कारण है कि प्रति वर्ष अनेक संस्कृत प्राकृत ग्रंथोंके गुर्जर गिरामें भाषान्तर छपते चले जाते हैं । एक समय वह था कि नये से नये संस्कृत प्राकृतके ग्रंथोंकी रचना द्वारा संस्कृत प्राकृत साहित्यकी वृद्धि होती थी । आज वह जमाना आ गया कि संस्कृत प्राकृत साहित्यकी हानिरूप भाषा ही भाषा होती जाती है । सत्य है परिवर्तन शील संसार कहा जाता है । अस्तु कभी फिर वह जमाना भी आजायगा जब संस्कृत प्राकृतका साहित्यही संसारभरमें फैल जायगा । जमाने हालमें तो जिस पर लोगोंकी रुचि बढे और जिससे वे फायदा उठा सकें वैसा ही प्रयत्न होना ठीक समझा जाता है और इसी लिये इस प्रस्तुत गणधर पूजा की रचना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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