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(२८) नम्न भाव इम आइयो, वीर. प्रभूके पास । वचन सुनी प्रभु वीरके, सफल हुई सब आस ॥ ३॥ दो चाली घरमें रहे, बाद हुए अनगार। छौं वरस दसकी कही, केवली वर्ष अँठार ॥४॥ जीव देह दो एक हैं, संशयमें मन लीन । वीर वचन संशय गयो, हुओ ज्ञान परवीन ॥५॥
___ लावनी-मराठी-ऋषभजिनंद विमलगिरिमंडन-यह चाल ।। वीर कहे सुनो वायुभूति तुम, जीव देह है न्यारा रे । नही जीव देह दो, एक ही जानत सब संसारा रे।।अंचली। देह विना प्रत्यक्ष नहीं कोई, जीव तनु निरधारा रे । जल बुदबुदके सम, तनुमें जीव है तुमरा विचारा रे॥धीर० मिथ्या है यह बात तुम्हारी, इच्छादि गुण द्वारा रे । गुणी देशसे परतख,जगतमें जीव ज्ञान निजधारारे।वीर० इंद्रिय जीव नहीं इंद्रियके, नाश स्मरण अवधारा रे । नहीं देह जीव है,मरण है जसवो जीव उदारा रे।वीर०३॥ ब्रह्मचर्य सत्य तप परभावे, देखत संयत प्यारा रे । शुभ आतम तनुसे, भिन्न है वेद वचन उच्चारा रे।वीर०४॥ आतम लक्ष्मी ज्ञान विमल गुण,वीर वचन अनुसारारे। चायुभूतिने, पाया वल्लभ हर्ष अपारा रे ॥ वीर० ५॥
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