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( २९ )
काव्य ।
सुरनरेश्वर पूजित पङ्कजं, श्रुतिपदेन समुद्भव संशयम् ।
जिनपवीर गिरागतकल्मषं, गणधरं श्रुतरत्नधरं स्तुवे ॥ १ ॥
मंत्र |
ॐ ह्रीं श्रीं, परमपुरुषाय, परमेश्वराय, जन्मजरामृत्युनिवारणाय सर्वलब्धि निधानाय श्रीमते वायुभूतिगणधराय, जलादिकं यजामहे स्वाहा |
॥ अथ चतुर्थ श्रीव्यक्तस्वामि गणधरपूजा |
सन्निवेश कोल्लाक में, धनुर्मित्र द्विज नार । वारुणि नंदन व्यक्त है, श्रवण जन्म जस तार ॥ १ ॥ भारद्वाज घरमें रहे, वर्ष पचीस प्रमान | बौर छद्म अरु केवली, वर्ष अठार जान ॥ २ ॥
इंद्रभूति आदि हुए, वीर प्रभुके सीस । निश्चय ये भगवान हैं, मानँ विसवा वीस ॥ ३॥ संशय अपना छेदके, शिष्य बनूंगा तास । नम्र भाव धारण करी, आये प्रभुके पास,
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