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(३०) संशय तुमको भूतका, पंडित व्यक्त सुजान । अर्थ यथारथ वेदका, भाखे श्री भगवान ॥ ५॥
___॥ वसंत-होई आनंद बहार रे-चाल ॥ सुनियो वेद विचार रे प्रभु वीर वखाने । अंचली।
इंद्रजाल सम जग कहे रे,
वेदश्रुति निरधार रे-प्रभु वीर० ॥ १ ॥ पृथवी पानी देवता रे,
अन्य श्रुति अवधार रे-प्रभुवीर • ॥ २ ॥ इस कारण संशय हुओ रे, __ अध्यातम परिहार रे-प्रमु० ॥ ३॥ भाव अनित्य सूचन करे रे,
स्पनोपम संसार रे-प्रभु०॥४॥ सर्वशून्य होवे नहीं रे,
स्वप्नास्वप्न प्रचार रे-प्रभु० ॥ ५ ॥ स्यादवाद मत सिद्ध है रे,
भावाभाव उदार रे-प्रमु० ॥६॥ आतमलक्ष्मी बोधसे रे,
संशय व्यक्त निवार रे-प्रभु० ॥७॥ ज्ञान विमल गुण धारियो रे,
वल्लम हर्ष अपार रे-प्रभु० ॥ ८॥
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