________________
(३४)
॥ अथ षष्ठ श्रीमंडित गणधरपूजा ॥
दोहा. विजया माता जनमियो, जनक नाम धनदेव । मंडित गणधर होयके, करे वीर जिन सेव ॥१॥ मौर्य मघारिख जन्मका, गोत्र वसिष्ठ प्रधान । तिगण घर वासे वसे, चउद छद्मका मान ॥२॥ वर्ष सोल जिन केवली, सकल लब्धि आवास । बंध मोक्ष है या नहीं, संशय मनमें खास ॥ ३ ॥ विगुण विभू बंधन नहीं, नहीं मोक्ष संसार । कर्म नहीं कर्ता नहीं, जीव अनादि विचार ॥४॥ पुण्योदय आलंबने, संशय छेदन काज । आयो छोरी मानको, सन्मुख श्री जिनराज ॥ ५ ॥
माढ-विमलाचलधारा मल हरनारा-यह चाल ॥ सुनी मंडित पंडित वचन अखडित वीरप्रभु सुखकार ।
हुए समकितधारी मोह निवारी,
लब्धि भंडारी वीरप्रभु गणधार ॥ अंचली। बंध मोक्ष दोनों नहीं रे, वेद वचन अनुसार ।
संगत नहीं तुम अर्थ है रे,
इस विध अर्थ विचार ॥ सुनी ॥१॥ विगत अवस्था छद्मकी रे, विगुण कहावे जीव । केवलज्ञानी विभूकहावे,व्यापक ज्ञान सदीव ॥ सुनी०२॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com