Book Title: Veer Ekadash Gandhar Puja
Author(s): Vijayvallabhsuri
Publisher: Granth Bhandar

View full book text
Previous | Next

Page 31
________________ (३३) शृंगादिसे शरादि होवे, गोमय वृश्चिक प्यारा। कारणके अनुरूप ही कारज, नहीं एकांत उदारा ॥ प्रभु० ॥५॥ इत्यादि युक्ति संगत प्रभु, . वचनसे संशय सारा । दूर करी हुए सोहम पंडित, वीर चरन अनगारा ॥ प्रभु०॥६॥ सोहम पाट परंपर दुप्पसह, यावत् पंचम आरा। आतम लक्ष्मी ज्ञान विमल गुण, वल्लभ हर्ष अपारा ॥ प्रभु०॥७॥ काव्य। सुरनरेश्वर पूजित पदकजं, श्रुतिपदेन समुद्भव संशयम् । जिनपवीरगिरागतकल्मषं, गणधरं श्रुतरत्नधरं स्तुवे ॥१॥ मंत्र । ॐ, ही, श्रीं, परमपुरुषाय, परमेश्वराय, जन्मजरामृत्युनिवारणाय सर्वलब्धि निधानाय श्रीमते सुधर्मस्वामिगणधराय, जलादिकं यजामहे स्वाहा । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42