Book Title: Veer Ekadash Gandhar Puja
Author(s): Vijayvallabhsuri
Publisher: Granth Bhandar
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संशय छेदन कारणे, महावीर भगवंत । चरण कमलमें आयके, कीनो भवको अंत ॥५॥
___ सोरठ-कुबजाने जादू डारा-यह चाल । प्रभु वीर वचन सुखकारा,
धन्य घटमें जिसने धारा । प्रभु०॥ अंचली। वीर कहे सुनो सोहम तुमरे,
मनमें ये है विचारा। पुरुषो वै पुरुषत्वको पावे,
पशु पशुत्व निहारा ॥ प्रभु०॥१॥ शृगालो वै एष जायते,
वेद वचन निरधारा। वेद वचन दो जातके निरखी,
संशय चित अवधारा ॥ प्रभु० ॥२॥ निश्चायक नहीं वेद वचन है,
संभावन परकारा। नर आयु मृदु आर्जव आदि,
कारण वस है धारा । प्रमु०॥३॥ नर भी वो होवें जग ऐसे,
पशु करम करनारा। मायादि वस होवे पशु वो,
कर्म बीज संसारा ॥ प्रभु० ॥४॥
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