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(२७.) धन्य जन्म जगत जस जिनवर है गुरु माथे। कियो वासक्षेप प्रभु वीर सुरासुर इंदा, आतम लक्ष्मी गुण ज्ञान विमल जिन चंदा ॥ वल्लभ हर्षे मन मानी गुरु आसानी । विनकर्मः ५॥
काव्य। सुरनरेश्वर पूजित पदकजं,
श्रुतिपदेन समुद्भव संशयम् । जिनपवीरगिरागतकल्मषं, गणधरं श्रुतरत्नधरं स्तुवे ॥१॥
मंत्र । ॐ, ही, श्री, परमपुरुषाय, परमेश्वराय, जन्मजरामृत्युनिवारणाय, सर्वलब्धि निधानाय श्रीमते अग्निभूतिगणधराय, जलादिर्क यजामहे स्वाहा ।
॥ अथ तृतीय श्री वायुभूति गणधर पूजा ॥
॥दोहा॥ रिख स्वातिमें जनमिया, वायु भूति जस नाम । मात तात शुभ गोत्र है, वही देश अरु गाम ॥१॥ मुझ बांधव दोनों हुए, अनुचर जस गुरु देव । अपना संशय टारके, मैं मी करूँ तस सेव ॥२॥ .
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