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गणधर चार ज्ञानधर होव,
केवल ज्ञान अंतमें पावें । ग० ४ ॥ क्षय करी कर्म इसी भव गणधर,
पंचम गति मुक्तिमें जावें । ग०५॥ मुनि गण गच्छके धारण कर्ता,
गणधर शब्द यथारथ थावे । ग०६॥ आतमलक्ष्मी ज्ञानविमल गुण, वल्लभ हर्ष अपूरव भावे । गणधर ० ७ ॥
॥ अथ प्रथम श्रीइंद्रभूति गणधर पूजा ॥
॥दोहा॥ देश मगधमें जानिये, गोबर नाम सुगाम । वसुभूति द्विज नंदनो, इंद्रभूति शुभ नाम ॥१॥ गौतम गोत्र प्रसिद्ध है, पृथिवी मात सुजात ।
ज्येष्टा रिखं है जन्मका, कंचन वर्ण सुगात ॥२॥ पंचाशत गृह तीम है, दीक्षा केवल बौर । नमिये मन वच कायस, सर्व लांब्ध भंडार ॥३॥ चेतन सत्ता है नहीं, पाँच मूतसे जीव । मद मदिराके अंगसे, जिम है होत सदीव ॥४॥ १ नक्षत्र । २ शरीर।
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