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________________ (२३) गणधर चार ज्ञानधर होव, केवल ज्ञान अंतमें पावें । ग० ४ ॥ क्षय करी कर्म इसी भव गणधर, पंचम गति मुक्तिमें जावें । ग०५॥ मुनि गण गच्छके धारण कर्ता, गणधर शब्द यथारथ थावे । ग०६॥ आतमलक्ष्मी ज्ञानविमल गुण, वल्लभ हर्ष अपूरव भावे । गणधर ० ७ ॥ ॥ अथ प्रथम श्रीइंद्रभूति गणधर पूजा ॥ ॥दोहा॥ देश मगधमें जानिये, गोबर नाम सुगाम । वसुभूति द्विज नंदनो, इंद्रभूति शुभ नाम ॥१॥ गौतम गोत्र प्रसिद्ध है, पृथिवी मात सुजात । ज्येष्टा रिखं है जन्मका, कंचन वर्ण सुगात ॥२॥ पंचाशत गृह तीम है, दीक्षा केवल बौर । नमिये मन वच कायस, सर्व लांब्ध भंडार ॥३॥ चेतन सत्ता है नहीं, पाँच मूतसे जीव । मद मदिराके अंगसे, जिम है होत सदीव ॥४॥ १ नक्षत्र । २ शरीर। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035302
Book TitleVeer Ekadash Gandhar Puja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1928
Total Pages42
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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