Book Title: Veer Ekadash Gandhar Puja
Author(s): Vijayvallabhsuri
Publisher: Granth Bhandar

View full book text
Previous | Next

Page 20
________________ ( २२ ) मगसिर वदि दशमी दिने, ग्रहि दीक्षा जिनराय । रोध सुकल दशमा हुओ, केवल ज्ञान उपाय ॥ ७ ॥ माधव सुदि एकादशी, नगर अपापा सार । समवसरे प्रभु वीरजी, महासेन वन धार ॥ ८ ॥ सोमल द्विजके यज्ञमें, विप्र मुखी अगियार । वेद - अर्थ उलटा करं, मन अभिमान अपार ॥ ९ ॥ जीवादिक संशय हरी, एकादश गणधार । बीर प्रभु थापन किये, जिनशासन जयकार ॥ १० ॥ जिम तीर्थंकर नामसे, तीर्थ करे अरिहंत | तिम गणधर शुभ नामसे, द्वादश अंग करंत ॥ ११ ॥ गिरिवर दर्शन विरळा पावे - यह चाल | गणधर नाम करम परभावे, गणधर गणधर पद उपजावे । ग० अंचली । सम चउरस संठाणे सोहे, तिम पहला संघयन कहावे | गण० १ ॥ ध्रुव उत्पाद विगम ये तीनों, पद अरिहंत स्वमुख से सुनावे | ग० २ ॥ त्रिपदीके अनुसारे गणधर, आगम रचना सब फरमावे | ग० ३ ॥ १ - २ - वैशाख । * इसको यदि बरवा - वा- पीलूमें गाना चाहो गा सकते हा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42