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विधि ।
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पहले प्रभु श्री महावीर स्वामीकी प्रतिमाजीके आगे श्रीगणधर देवकी प्रतिमा या चरणपादुका स्थापन करनी चाहिए, फिर स्नात्र पूजा पढ़ाये बाद पूजाका प्रारंभ करना । प्रति गणधर अष्ट द्रव्यकी थाली या रकेची लेकर एक स्नात्री प्रति पूजा में खडा होवे । थाली या रकेबीमें प्रति पूजा चाँदी या स्वर्णकी मुद्रा चढ़ावे । यथाशक्ति भाक्त करना परम कर्त्तव्य है । एक पाट पर ११ स्वस्तिक कर प्रत्येक पर एक एक पैसा और एक एक सुपारी रखने चाहिए । यदि पैसे के स्थानपर कोई भाग्यवान रुपया या मोहर चढ़ाना चाहे तो उसे अखतियार है। प्रभुभक्तिमें भावकी मुख्यता है । अमीर और गरीब सभी अपने अपने भावानुसार कार्य कर सकते हैं । करना कराना अनुमोदना भावानुसार फल देता है । दोहा आदि पूजा पढ़ लेनेके बाद प्रभु प्रतिमा और गणधर प्रतिमा या चरणपादुका जो कुछ स्थापन किया हो उनका अभिषेकादि प्रकार प्रत्येक पूजामें पृथक् पृथक् करना । अग्रपूजाकी सामग्री अर्थात् पूजन दीप घूप अक्षत फल नैवेद्य और नकद स्वस्तिकपर स्थापन कर देने ।
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देव वंदन विधि
यदि गणधर देववंदन करनेकी इच्छा होवे तो इरिया वहिया • तस्स ० एक लोगस्सका काउस्सम्म चंदेसु निम्मलयर तक, पीछे प्रकट लोगस्स । बादमें—
इच्छाकारेण संदिसह भगवन चैत्य वंदन करूं ? इच्छं
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