Book Title: Veer Ekadash Gandhar Puja
Author(s): Vijayvallabhsuri
Publisher: Granth Bhandar

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Page 13
________________ ..(१५) विज्ञप्ति निष्फल नहीं होगी क्योंकि आप दयालु तथा शासन प्रभावक आचार्य हैं इत्यलम् । मुनि दुर्लभ विजयकी वंदना । ( हस्ताक्षर ) __ सालगिया चोखचंदकी सविनय हार्दिक विधिवंदना मान्य करियेगाजी । हे नाथ आप श्री पंजाब देशका उद्धार कर रहे हैं ऐसी ही निगाह इस मालवा प्रांतकी ओर सुदृष्टि करेंगे ऐसी आशा है । श्रीमान् मुनिराज दुर्लभ विजयजीको ज्वर आता है इस कारण फागण चौमासा यही होगा । इनके उपदेशसे एक गायनमंडली एक माहसे कायम हुई है पाँच सात लडके प्रतिदिन श्रम करते हैं। श्री गणधरोंकी अंगरचना चांदीकी हुई है पूजाकी त्रुटि है वो आप पूर्ण करेंगे यह पूर्ण आशा है । [ महाराज साहब जहाँ हों वहां यह पत्र पहुंचानेकी कृपा करें] ऊपर लिखे दोनों पत्रोंके जवाबमें श्री आचार्य महाराजने श्रीयत घियानी द्वारा फर्माया था कि आपके दोनों पत्र मिले अवसर होगा और ज्ञानीमहाराजने ज्ञानमें देखा होगा तो संभव है आपकी इच्छा पूर्ण हो जायगी परंतु आप यह लिखें कि जिस पूजाको आप चाहते हैं वह कितनी बडीहो यानी उसका कितना विस्तार किया जावे। तथा चाल और राग रागिणियां कौन कौनसी होवें ? जिसके जवाबमें घीयाजी ने ता. २-४ १९२५ को अपने पत्रमें प्रार्थना की है कि-"अधिक विस्तार वाली पूजा बहुत बड़ी होनेसे पढ़ाने वाले अधिक समय लगानेमें उत्साह रहित होजाते हैं इस लिये आप जैसे योग्य जाने और जहाँ तक हो सके संक्षिप्त बने ऐसी कृपा करें आप स्वयं विज्ञ हैं हम सेवकोंकी योग्यता आपसे छिपी हुई नहीं हैं । चाल तथा रागरागिणियों के लिये भी आप समShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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