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यज्ञ हैं जैसी आपके ध्यानमें आवे वैसीही ठीक होगी। क्योंकि आजतक जितनी पूजाएँ आप श्री की कृतिकी हैं प्रायः उन सभीको लोग पसंद करते हैं और चाहसे पढ़ाते हैं--इत्यादि।। __पूर्वोक्त प्रार्थना को मान देकर आचार्य महाराज मरहम जैनाचार्य १००८ प्रातः स्मरणीय न्यायांभोनिधि श्रीमद्विजयानंद सूरि प्रसिद्ध नाम श्रीआत्मारामजी महाराज साहिबके पट्टधर श्री १०८ श्रीमद्विनय वल्लभ सरिजी महाराजसाहिबने यह प्रसादी हम सेवकोंको बख्शी है। हम सेवकवर्गका कर्त्तव्य है कि इसका यथायोग्य शुभ उपयोग करके आचार्य श्रीकी मिहनतको सफल करें । इति शम् ।।
विनीतप्रकाशक।
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