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वर्णी वाणी
२१. भेष में मोक्ष नहीं, मोक्ष तो आत्मा का स्वतन्त्र परिणमन है । पर पर पदार्थ का संसर्ग छोड़ो यही मोक्ष का साधक है।
२२. मोक्षमार्ग मन्दिर में नहीं, मसजिद में नहीं, गिरजाघर में नहीं, पर्वत-पहाड़ और तीर्थराज में नहीं, इसका उदय तो आत्मा में है !
२३. चित्तवृत्ति को स्थिर रखना मोक्ष प्राति का प्रथम उपाय है।
२४. आत्मा की शुद्ध अवस्था का नाम मोक्ष है।
२५. मोक्षमार्ग पर के आश्रय से सदा दूर रहा है, रहता है और रहेगा। .. २६. मोक्षमार्ग में वही पुरुष गमन कर सकता है जो सिंहवृत्ति का धारी हो।
२७. जिन भाग्यशाली वीरों ने पराश्रितपने की मावना को पृथक् किया वे ही वीर अल्पकाल में मोक्षमार्ग के पात्र होते हैं। . २८. जिसकी प्रवृत्ति हर्ष और विषाद से परे है वही मुक्ति का पात्र है।
२६. वही मनुष्य संसार से मुक्ति पावेगा जो अपने गुण दोषों की आलोचना करता हुआ गुणों की वृद्धि और दोषों की हानि करने की चेष्टा करने में अपना उपयोग लगाता रहेगा।
३०. निशङ्क रहना ही मोक्ष पथिक का प्रधान सहारा है।
३१. जो वर्तमान में पूतात्मा है वही मोक्षमार्ग का अधिकारी है । सम्पत्ति पाकर भी मोक्षमार्ग का लाभ जिसने लिया उसी नररत्न का मनुष्य जन्म सफल है।
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