Book Title: Varni Vani
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 357
________________ वर्णी-वाणी २९८ केवल वस्तु स्वभाव जो सो है आतम भाव । आत्मभाव जाने बिना नहिं आवे निज दाव ।। ७ ॥ ठीक दाव आये बिना होय न निज का लाभ । केवल पांसा फेंकते नहिं पौ बारह लाभ ॥८॥ जिसने छोड़ा आपको वह जग में मति हीन ।। घर घर मांगे भीख को बोल वचन अति दीन ॥ ९॥ आत्म ज्ञान पाये बिना भ्रमत सकल संसार । इसके होते ही तरे भव दुख पारावार ॥१०॥ जो कुछ चाहो आत्मा ! सर्व सुलभ जग बीच । स्वर्ग नरक सब मिलत है भावहिं ऊँचरु नीच ॥११॥ आज घड़ी दिन शुभ भई पायो निज गुण धाम । मनकी चिन्ता मिट गई घटहिं विराजे राम ॥१२॥ ज्ञान ज्ञान बराबर तप नहीं जो होवे निर्दोष । नहीं ढोल की पोल है पड़े रहो दुख कोष ॥१३॥ जो सुजान जाने नहीं आपा पर का भेद । ज्ञान न उसका कर सके भव वन का विच्छेद ॥१४॥ सर्व द्रव्य निज भाव में रमते एकहि रूप। याही तत्त्व प्रसाद से जीव होत शिव भूप ॥१५॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only E ___www.jainelibrary.org

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