Book Title: Varni Vani
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 376
________________ पारिभाषिक शब्दकोष साम्यभाव - पृ० १७४, वा० ३, समता परिणाम जो कि रागद्वेष के अभाव में होते हैं । ३१७ योगशक्ति - पृ० १७४, वा०५, जिससे आत्मा सकम्प बना रहता है | स्थितिबन्ध - पृ० १७५, वा०५, बँधनेवाले कर्मों में स्थिति का पड़ना स्थितिबन्ध है । · अनुभागबन्ध - पृ० १७५, वा०५, बँधनेवाले कर्मों में फलदान शक्ति का पड़ना अनुभागबन्ध है । द्रव्यकम - पृ० १७६, वा० १५, जीव से सम्बद्ध जिन पुद्गल पिण्डों में शुभाशुभ फल देने की शक्ति पड़ जाती है वे द्रव्यकर्म कहलाते हैं । पर्व के दिन - पृ० १७६, वा० १६, जिन दिनों को धर्मादि कार्यों के लिये विशेष रूप से निश्चित कर लिया है या जिन दिनों में कोई सांस्कृतिक घटना घटी है वे दिन पर्व दिन कहलाते हैं । मैत्रीभाव - पृ० १७७, वा० २, जैसे हम स्वतन्त्रता के अधि कारी हैं वैसे ही संसार के अन्य जीव भी उसके अधिकारी हैं। ऐसा मान कर उनकी उन्नति में सहायक होना और उनसे, संसार वासना की पूर्ति की आशा न रखना ही मैत्री भाव है । लोभ लालच उच्चवंश - पृ० १७८, वा० ६, वंश का अर्थ है आचारवालों की परम्परा या आचार की परम्परा । इसलिये उच्चवंश का अर्थ हुआ उच्च आचारवालों की परम्परा या उच्च आचार की परम्परा । परिग्रह — पाँच पाप - पृ० १७६, वा० १, हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह | Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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