Book Title: Varni Vani
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 378
________________ ३१९ पारिभाषिक शब्दकोष मूर्त-पृ० २२५, पंक्ति ६, रूप, रस आदि पुद्गलधर्मवाला। विजातीय-पृ० २२५, पंक्ति ८, भिन्न-भिन्न जाति के दो द्रव्य । परमाणु-पृ० २२५, पंक्ति ११, जिसका दूसरा विभाग सम्भव नहीं ऐसा सबसे छोटा अणु।। सजातीय-पृ० २२५, पंक्ति १४, एक जाति के दो द्रव्य । चार्वाक-पृ० २२५, पंक्ति २०, आत्मा और परलोक को नहीं माननेवाला। ____ निगोद-पृ० २२६, पंक्ति १६, वनस्पति योनि का अवान्तर भेद । ये एक शरीर के आश्रय से अनन्तानन्त जीव रहते हैं। इनमें से एक के आहार लेने पर सबका आहार हो जाता है । एक के श्वासोच्छवास लेने पर सबको श्वासोच्छ्वास का ग्रहण हो जाता है और एक के मरने पर सब मर जाते हैं। ___ स्पर्शन इन्द्रिय-पृ० २२६, पंक्ति १७, जिससे केवल स्पर्श का ज्ञान होता है। द्वीन्द्रिय जीव-पृ० २२६, पंक्ति २३, जिसके स्पर्शन और रसना ये दो इन्द्रियाँ हों। त्रीन्द्रिय जीव-पृ० २२६, पंक्ति २४, जिसके स्पर्शन, रसना और घ्राण ये तीन इन्द्रियाँ हों। चतुरिन्द्रिय जीव-पृ० २२६, पंक्ति २४, जिसके स्पर्शन, रसना, घ्राण और चक्षु ये चार इन्द्रियाँ हों। असैनी पञ्चेन्द्रिय--पृ०२२७, पंक्ति १, जिसके पाँच इन्द्रियाँ तो हों किन्तु मन न हो। नैयायिक--पृ० २३२, पंक्ति १५, न्यायदर्शन को माननेवाले । सर्वार्थसिद्धि--पृ० २३३, पंक्ति २४, देवों का सर्वोत्कृष्ठ स्थान । क्षायिकसम्यक्त्व--पृ० २३६, पंक्ति १४, सम्यग्दर्शन के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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