Book Title: Varni Vani
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 379
________________ वर्णी-वाणी प्रतिबन्धक कारणों के सर्वथा अभाव से प्रकट होनेवाला आत्मा का गुण । भोगभूमि--पृ० २४०, पंक्ति २, जहाँ खेती आदि साधनों की आवश्यकता नहीं पड़ती किन्तु प्रकृति प्रदत्त साधनों से जीवन निर्वाह हो जाता है वह भोगभूमि है। धर्मादि चार द्रव्य--पृ० २४७, पंक्ति ६, धर्म द्रव्य, अधर्म द्रव्य, आकाश द्रव्य और काल द्रव्य । ___ उपयोग स्वभाव-पृ० २४६, पंक्ति ८, ज्ञान-दर्शन स्वभाव । निश्चय और व्यवहार___ धर्म द्रव्य-पृ० २५१, पंक्ति ४, जो जीव और पुद्गल की गमन क्रिया में सहायक हों। ___अधर्म द्रव्य-पृ० २५१, पंक्ति ४, जो जीव और पुद्गल की स्थिति क्रिया में सहायक हो। आकाश-पृ० २५१, पंक्ति ४. जो सब द्रव्यों को अवकाश दे। काल-पृ० २५१, पंक्ति ४, जो सब द्रव्यों के परिणमन में सहायक हो। ग्यारह अङ्ग-पृ० २५३, पंक्ति ३, जैनियों के प्रसिद्ध ग्यारह मूल शास्त्र जिनकी रचना तीर्थङ्कारों के प्रधान शिष्य करते हैं। स्थितीकरण अंग अन्तरात्मा-पृ० २७३, पंक्ति १०, जो बाहर की ओर न देखकर भीतर की ओर देखता है । अर्थात् जो आत्मा को शररादि से भिन्न अनुभव करता है वह अन्तरात्मा है । बहिरात्मा-पृ० २७३, पंक्ति १२, जो शरीरादि को ही आत्मा अनुभवता है वह बहिरात्मा है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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