Book Title: Varni Vani
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 368
________________ ३०९ पारिभाषिक शब्दकोष स्वातन्त्र्य प्राप्ति के निमित्त हैं इस रागभाव के साथ उनमें चित्त लगाना शुभोपयोग है । संसार - पृ० ६० वा० ५६, आत्मा की अशुद्ध परिणति का नाम संसार है । " दशधा धर्म - पृ. ६ वा. ६२, क्षमा, मार्दव, आर्जव, सत्य, शौच, संयम, तप, त्याग, आकिञ्चन्य और ब्रह्मचर्य । औयिक भाव -- पृ. ६ वा. ६२, पूर्वकृत कर्म के उदय से होनेवाली आत्मा की विकृत परिणति का नाम औदयिक भाव है । आत्मशक्ति -- दिव्यध्वनि -- पृ. ११, वा. २, तीर्थङ्कर का उपदेश । सम्यग्दर्शन --- पृ. १२, वा. ६, प्रत्येक पदार्थ स्वतन्त्र और परिपूर्ण है इस श्रद्धा के साथ ज्ञान दर्शनस्वभाव आत्मा की स्वतन्त्र सत्ताका अनुभव करना सम्यग्दर्शन है । काल लब्धि - - पृ० १२, वा० ६, लब्धि योग्यताका दूसरा नाम है | जिस समय सम्यग्दर्शन की प्राप्ति होती है उसे काललब्धि कहते हैं। यहां काल उपलक्षण है । इससे सम्यग्दर्शन की प्राप्ति की हेतुभूत अन्य योग्यताएं भी ली गई हैं । निर्विकल्पक दशा -- पृ. १२ वा. ८, रागबुद्धि और द्वेषबुद्धि का नाम विकल्प है जहाँ ऐसा विकल्प न होकर मात्र जानना देखना रह जाता है वह निर्विकल्पक दशा है । -yog अनन्त ज्ञान -- पृ. १३, वा. १९, ज्ञान दो प्रकार का हैअनन्त ज्ञान और सान्त ज्ञान । जो राग, द्वेष और मोह के निमित्त से होनेवाले आवरण के कारण व्यवहित या न्यूनाधिक होता रहता है वह सान्त ज्ञान है। किन्तु जिसके उक्त कारणों के दूर हो जाने पर सतत एक समान ज्ञानकी धारा चालू रहती है वह ज्ञानधारा अनन्त ज्ञान है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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