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इन्द्रियों की दासता १. इन्द्रियों का दास सबसे बड़ा दास है।
२. विषयों से परिपूर्ण दुनियां में जो अनाचार होते हैं उसका कारण स्पर्शन इन्द्रिय को दासत की प्रभुता ही है।
३. सब रोगोंका मूल कारण भोजन विषयक तत्र गृध्नता है । यदि रसना इन्द्रिय पर विजय प्रान न हो सकी तो समझो किसी पर भी विजय प्राप्त नहीं कर सकते।
४. रसनेन्द्रिय विजयी हो संयमी होते हैं । अल्पकाल जिहा इन्द्रिय को वश करने से आजन्म नीरोगता और संयम को रक्षा होती है।
५. रसना इन्द्रिय पर नियन्त्रण रखना सबसे हितकर है जो वस्तु जिस समय पच सके वही उस काल में पथ्य है । औषधि का सेवन आलसी और धनिकों के लिये है।
६. संसार के कारण रागादिकों में भोजन की लिप्सा ही प्रधान कारण है । अतः जिसने रसनेन्द्रिय को नहीं जीता उसे उतम गति होना प्रायः दुर्लभ है।
७. जिह्वा लम्पटो आकण्ठ तृमि को करते हुए नाना रोग के पात्र तो होते ही हैं साथ ही लालच के वशीभूत होकर दुर्वासना के द्वारा अधोगति के पात्र होते हैं।
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