Book Title: Varni Vani
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 333
________________ वर्णी-वाणी २७६ कि तुमने हमारा महान् उपकार किया। पश्चात् उन चारों आदमियों को काम मिल गया। एक माह के बाद वह अपने-अपने घर चले गये और भगत से यह व्रत ले गये कि हम लोग निरन्तर आजीवन परोपकार करेंगे। कहने का तात्पर्य यह कि भगत ने उन चार मनुष्यों का स्थितिकरण किया। एक आप बीती यह तो मनुष्यों की बात है, अब एक कथा आप बीती सुनाता हूं और वह है हिंसक जन्तु की, जिसकी रक्षा बाईजी ने को । कथा इस प्रकार है "सागर में हम कटरा धर्मशाला में रहते थे, उसमें एक बिल्ली ने प्रसव किया । दैवात् वह मर गई और उसके बच्चे भी मर गये। एक बालक बच गया, परन्तु माँ के मरने से और दुग्धादि के न मिलने से दुर्बल हो गया। मैं बाईजी के पास आया और एक पीतल के बर्तन में दूध लाकर उस बिल्ली के बच्चे के सामने रख दिया और वह दूध पीकर बोलने लगा। बाईजी भी आ गईं। हमसे कहने लगीं-"बेटा ! क्या करते हो ?” मैंने कहा-"बाईजी ! इसकी माँ मर गई । यह तड़पता था । मुझे उसकी यह दशा देखकर दया आ गई । अतः आपसे दूध लाकर उसको पिला दिया, क्या बेजा बात हुई ?” बाईजी बोली-"ठीक है परन्तु यह हिंसक जन्तु है, कभी तुम इसी पर रुष्ट हो जाओगे । संसार है, हम और तुम किस-किस की रक्षा करेंगे ? अपने योग्य काम करना चाहिये ।” मैंने कहा-"जो हो हम तो इसे दूध पिलावेंगे।" मैंने उसे एक माह तक दूध पिलाया । एक दिन की बात है कि एक छोटा चूहा उस बच्चे के सामने आ गया। उसने दूध को छोड़ झट उसे मुख से पकड़ लिया । इस क्रिया को देखकर मैं उसे थप्पड़ मारने की चेष्टा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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