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वर्णा-वाणी
१०. मन के अनुकूल होनेपर भी प्रकृत्ति के प्रतिकूल कोई भी कार्य मत करो।
११. कहने की प्रकृति छोड़ो, करने का अभ्यास करो।
१२. किसी कार्य को देखकर भय मत करो। उपाय से महान् से महान भी कार्य सहज में हो जाते हैं।
१३. जो कुछ करना चाहते हो धीरता और सतत प्रयत्न शीलता से करो।
१४. जिस कार्य से आत्मा में आकुलता न हो उस कार्य को ही कर्तव्यपथ में लाने का प्रयत्न करो।
१५. किसीको मत सताओ और दूसरों को अपने समान समझो।
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