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ब्रह्मचर्य
१. ब्रह्मचर्य शब्द का अर्थ-"आत्मा में रमण करना है।" परन्तु आत्मा में आत्मा का रमण तभी हो सकता है जबकि चित्तवृत्ति विषय वासनाओं से निर्लिप्त हो, विषयाशा से रहित होकर एकाग्र हो। इस अवस्था का प्रधान साधक वीर्य का संरक्षण है अतः वीर्यका संरक्षण ही ब्रह्मचर्य है।
२. आत्मशक्ति का नाम वीर्य है, इसे सत्व भी कहते हैं । जिस मनुष्य के शरीर में वीर्य शक्ति नहीं वह मनुष्य कहलाने योग्य नहीं बल्कि लोक में उसे नपुंसक कहा जाता है।
३. आयुर्वेद के सिद्धान्तानुसार शरीर में सप्तधातुएँ होतो हैं-१ रस २ रक्त, ३ मांस, ४ मेदा, ५ हड्डी, ६ मज्जा
और ७ चीर्थ। इनका उत्पत्तिक्रम रस से रक्त, रक्त से मांस मांस से मेदा, मेदा से हड्डी, हड्डी से मज्जा और मज्जा से वीर्य बनता है। इस उत्पत्ति क्रमसे स्पष्ट है कि छटवीं मज्जा धातु से बनने वाली सातवीं शुद्ध धातु वीर्य है । अच्छा स्वस्थ्य मनुष्य जो आधा सेर भोजन प्रतिदिन अच्छी तरह हजम कर सकता है वही ८० दिन में ४० सेर याने एक मन अनाज खाने पर केवल एक तोला शुद्ध धातु वीर्य का सञ्चय कर सकता है ! इस हिसाब से एक दिन का सञ्चय केवल १॥ सवारती से कुछ कम ही पड़ता है ! इसीलिये यह कहा जाता है कि हमारे शरीर
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