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वर्णी-वाणी
८. जो कुछ करना चाहते हो उसे निश्चल चित्त से करो। सन्देह की तुला पर आरूढ़ होने की अपेक्षा नीचे रहना ही अच्छा है। ___ यदि चित्त को स्थिर रखने की अभिलाषा है तब-(१) पर पदार्थों के साथ सम्पर्क न करो । (२) किसी से व्यर्थ पत्रव्यवहार न करो। (३) और न किसी से व्यर्थ बात करो। (४) मन्दिर जी में एकाकी जाओ। (५) किसी दानी की मर्यादा से अधिक प्रशंसा कर चारण बनने की चेष्टा मत करो, दान जो करेगा अपने हित को दृष्टि से करेगा, हम उसका गुणगान करें सो क्यों ? गुणगान से यह तात्पर्य है कि आप उसे प्रसन्न कर अपनी प्रशंसा चाहते हो। इसका यह अर्थ नहीं कि किसी की स्तुति मत करो उदासीन बनो।
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