Book Title: Valmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Author(s): Govindlal H Bhatt
Publisher: Oriental Research Institute Vadodra

View full book text
Previous | Next

Page 16
________________ कथयस्वेह यत्तत्त्वम् V. 3.23c कथया पूर्ववृत्तया V. 35-33b कथयामरपूजित VII. 35.13d कथयामास काकुत्स्थः VII. 88.4c चिन्तितम् I. 57.12d तत्त्वतः II. 35.24d तत्ववित् VI. 3.gd तां कथाम् II. 116.26d ار 37 ور "" در " 23 वानरः I. 1. 63b समुनि: VII. 71.5C कथयामास सुव्रतः I. 31.24d "3 "" " VII. 85.2d II. 46.15c सूताय 37 कथयित्वा तु दुःखार्तः II. 57.1a नरश्रेष्टः VII. 86. IC कथयिष्यन्ति धर्मज्ञ II. 12.400 " :D लोकेषु III. 53.8a कथयिष्यामि तत्तत्त्वम् V. 3.25c कथयेत्याह सुव्रत VII. 85.1d कथाः कथयतां श्रुतम् III. 11.31b कथयतो मम I. 34.14b कथयसे मम II. 12.21d "" धर्मात्मा I. 24. Sa " बुद्धिमान् III. Id कथां कथयतः श्रुताम् I. 45.14b 33 VII. 89.2c कथयतस्तेषाम् VII. 68.1a. कचिदनुप्रियाम् II. 118.23d कथा ते रघुनन्दन VII. 40. 18b 19 13 " कथानां नास्ति मे नृप VII. 55.2d विभो 1. 65.36b 33 बहुरूपाणाम् VII. 43.1c " "" " कथान्ते रघुनन्दनः I. 39.1b रघुनन्दन I. 52.12 शुकसारिणौ VI. 29.5d Jain Education International १८१ कथान्ते सुमतिर्वाक्यम् I. 48. IC कथाप्रकारैर्बहुभिः VII. 66.17c कथाभिरपरिश्रम II. 64.5b कथाभिरभिरज्यन्ते II. 67.16c कथाभिरभिरज्जयन् I. 23.20d कथाभिरभिरामाभिः I. 23.220 कथाभिरभिरूपाभिः VII. 66. 16c कथाभी रमयामास VII. 89.25c कथा मद्भुतदर्शनाम् VII. 57.1b कथां परमधर्मिष्टाम् VII. 55.30 कथायामुपचक्रमे VII. 80. Id कथाशीलाः कथाप्रियैः II. 67.16d कथाशेषं प्रचक्रमे VII. 86. Id कथाचकुर्मियो जनाः II. 6.15b कथा श्रुतिमुपागता II. 118.24d कथा श्रुखा सुदारुणाम् VII. 65.39b कथासंसक्तचेतसः III. 17.5b कथास्तत्र सहस्रशः VII. 39.6b VII. 71.5b 9 कथितं दिवि दैवतैः VII. 33. Id कथितमकथयद्यथाक्रमेण VI. 113.5Ic कथितं परमं वा I. 36.2b I. 45.2b कथितो निर्गमः सौम्य VII. 57.90 " "" कथितं सर्वमाचष्ट VI. 34.1gc رو " "" "" हि यदस्य मे V. 34. Job 37 कषा तव तु स्नेहात् II g. rga कथं युद्धं भविष्यति III. 24.23d रघूणां स श्रेष्टः II. 47.6c रथं त्वया हीनम् II. 52.470 रथैर्दिर्याला II. 12.95a राक्षससेवितम् III. 17.13b राजन्करिष्यसि V. 51.27f " " " "} साधु भामिनि V. 23.1gb संभवकारणं तु सौम्य VII. 57.21b For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 ... 1190