Book Title: Valmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Author(s): Govindlal H Bhatt
Publisher: Oriental Research Institute Vadodra

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Page 15
________________ कथमिन्द्रं जयिष्यामि VI. 68.20c कथमुन्छेन वर्तयेत् II. 24.2d कथमुष्णं च शीतं च II. 61.4c कथमूरू कथं बाहू, V. 35.40 कथमेका महारण्ये III. 46.3ra कथमेको जयिष्यसि VI. 64.12d कथमेतद्वदन्तु माम् VII. 43.2rd कथमेनं रणे क्रुद्धम् VI. 61.3IC ,, वधिष्याम: VII. 85.12c कथमेवंविधं पापम् III. 49.26c कथमेवंविधो वीर: VI. 68.13a कथमेष निपातितः IV. 22.2gf कथमेषा भविष्यति IV. 30.rod कथं पल्या मया विना IV. 23.27d ,, पद्भयामिह प्राप्तौ I. 43.4c ,, , , I. 50. Ic ,, पापं करिष्यति IV. 16.5d , पापे न शोचसे II. 73.IId ,, पितुश्चाप्यधिको महाहवे VII. I.36a ,, पुत्र भरिष्यामि II. 64.35c ,, पुत्रं महात्मानम् II. 5I.I7a ,, पुरुषमानी स्यात् II. 23.35c ,, प्रकृतिसंपन्ना II. 22. I9a ,, प्रतिज्ञा संश्रुत्य III. 61.7c ,, प्रमाणा: के चैतान् I. 20.13a ,, प्राप्म्याम्यहं कामम् I. 8.9c ,, भयमसंयुद्धम् VI. III..12a ,, भवान्विजानीत IV. 46. Ic भवेदर्थविशारदस्य VI. I.IIC ,, भूयोऽनुगच्छसि IV. 16.6b ,, भ्राता निरस्यते VI. 87.20d ,, मत्स्याश्च सौपर्णाः IV. 51.8a ,, मया विना सीताम् III. 75.24c ,, माता कथं भ्राता VII. 24.14a ,, मां नेतुमिच्छसि V. 37.31b | कथमार्योऽभिधास्यति III. 59 IIb कथं मिथ्या करिष्यति V. 60.186 कथमुत्पलपत्राक्षी V. 13. Lc कथं मृत्युवशंगत: VI. III.48b ,, मे विश्वसिष्यति II. 12.72b कथयन्तं तु सौमित्रम् VI. 84.8a कथयन्तः शुभाः कथा: VI. II2.Id ,, स्वराज्यानि VII. 39.6c , स्वविक्रमान् VI. 42.42d कथयन्ति द्विजातयः III. 68.35b न ते किंचित् III. 29.I7c पुरे राजन् VII. 41.22a मिथ: कथाः II. II6.10d यथा पौराः VII. 43.IIC यशो भुवि IV. I7.18d शुभाशुभम् VII. 43.13b ,, स्म संहृष्टा: VII. 43.3c ,, हि रामेण VI. 91.28c कथयन्तीव शशिना V. 37.27a कथयन्तु च सर्वशः I. 67.25d ,, नृपाय वै I. 67.26b कथयन्तो महाभागा: VI. II2.4a ,, मिथस्तत्र II. 6.20c कथयन्त्या हि मधुरम् II. II9.10c कथयन्नास्त वै नित्यम् II. I.I20 कथय मम रिपुं तगद्य 2 IV. 6.27c कथयस्व च विस्रब्धः VII. 43.IIa ,, त्वया दृष्ट: V. 27.8a ,, न ते भयम् III. 60.25d , ममानघ VII. 4.7b ,, ममोपायम् II. 9.9a ,, यथातत्वम् VII. 43.) , वरारोहम् III. 60.18c कथयस्वाविशङ्कस्त्वम् VII. I03.16c कथयस्वेति राघवः VII. I03.15d Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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