Book Title: Valmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Author(s): Govindlal H Bhatt
Publisher: Oriental Research Institute Vadodra

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Page 13
________________ १७८ कतरेण गमिष्यामि II. 85.4a ,, पथा ब्रह्मन् I. 35.4c कतिचित्तत्र राक्षसाः V. 42.43b कति दुर्गाणि दुर्गायाः VI. 3.3a कत्थनेन विदर्शितम् III. 29.20b कत्थसे किं वृथा रक्षःVI. 79.18a कथं कमलपत्राक्षः II. 13.9c , कार्यमिति ब्रुवन् IV. 64.7d ,, कुमारौ वैदेह्या II. 58.8c ,, कृत्वा न लज्जसे III. 53.7b ,, कृपणजीविका II. 20.47d ,, क्रव्यादसिंहानाम् II. 61.6c ,, क्षपयितव्याः स्युः VI. 42.40 ,, गङ्गा त्रिपथगा I. 36.3c ,, गङ्गावतरणम् I. 42.6a , गच्छामि भामिनि II. 14.62b ,, च धर्मार्थविनीतवुद्धिः V. 52.16a ,, च नाम ते राजन् VI. III.67c , च प्रतिकर्तव्यम् I. 20.13c ,, च मयि वर्तते V. 65.5b ,, च राक्षसैरेभिः VI. 63.39a ,, चानेन कर्मणा II. 58.32d ,, चापि मनस्विनीम् IV. I.II2d ,, चाल्पशरीरस्त्वम् V. 37.32a कथंचित्तेन संयुगे III. 39.1b कथंचित्परिपक्ष्यामि VI. 2.23a कथंचित्प्राप्य जीवितम् III. 39.14b कथंचित्सकलत्रोऽसौ IV. 59.18c कथंचित्सांपराये त्वाम् V. 37.53c कथंचित्सौम्य जीवतीम् III. 18.I9d कथंचिदभिविज्ञाय II. I00.2a कथंचिदहमागतः III. 31.2d कथंचिदीयुर्वदिहाद्य मार्दवम् V. 41.4d कथंचिद्भवती दृष्टा V. 38.49a " , V. 67.26c कथंचिद्विनिपातितः VI. 9I.I6b कथंचिन्निर्जितां सीताम् V. 60.26c कथंचिन्मृगशावाक्षी V. 58.61c , V. 59.28a कथं चेदं वनं दुर्गम् IV. 5I.Iga ,, जनकराजस्य VI. 5.16a ,, जानासि लक्ष्मणम् V. 35.2b ,, जीवति जानकी V. 66.15f ,, तच्चन्द्रसंकाशम् III. 68.6a ,, तत्रैव निर्यातु VI. 60.86c ,, तदमृगद्विजम् VII. 79.2d ,, तं वालिनं हन्तुम् IV. II.6.c ,, तस्मिन्न वर्तेत II. I8.16c ,, तस्यापराध्यसि III. 50.13d ,, तापसयोर्वा च III. 2.IIC ,, तिष्ठत्सु ज्येष्टेषु VII. 63.2c , तु त्वमिहागता III. 46.29b ।, तेभ्यो न बिभ्यसे III. 46.30b , ते भ्रातरो वने VII. I0.1b ,, तेषां जलक्रिया I. 42.6b ,, ,, मया रणे I. 20.14d ,, तो द्विज पार्थिवी VII. 56.2b ,, ., VII 57.2b , त्रैलोक्यमाक्रम्य VI. III.6a ,, त्वं कर्मणाशक्तः II. 23.12a ,, ,, नाभिभाषसे II. 64.10d ,, त्वपररात्रेषु III. 16.3cc ,, त्वया सहानेन V. 42.6c ., त्वां पुनरादद्याम् VI. II5.20c ,, त्वं रक्षसां वर III. 50.11b ,, दशरथाज्जातः II. 82.12a ,, ,, II. I06.10a ,, दशरथेन त्वम् IV. 17.43c ,, दशरथो भूमौ II. 5I.9a ,, ,, ,, II. 86.10a Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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