Book Title: Vallabh Bharti Part 01
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Khartargacchiya Shree Jinrangsuriji Upashray

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Page 145
________________ संवाह खेटक निधान यक्ष राजा रानी ग्राम सेना [पैदल] हाथी घोड़ा १६००० ३२००० ६४००० १६००००००० १६००00000 ८४००००० ८४००००० ८४00000 आगर पुर द्रोणमुख मडंब कब्बड पतन रत्न १४००० १६००० २०००० ७२००० 88000 ८४000 ८४००० १६८००० १४ नाटक नेमिनाथ चरित्रः-प्रथम पद्य में भगवान् नेमिनाथ को नमस्कार कर उनका संक्षेप में जीवन चरित्र कहने की कवि प्रतिज्ञा करता है और अन्तिम १५ वें पद्य में कल्याण की अभिलाषा करता है । चौथे पद्य में यदुवंशीय नेमिनाथ द्वारा राजीमती'' को त्याग कर दीक्षा ग्रहण किये जाने का उल्लेख पार्श्वनाथ चरित्रः-जिनके मस्तक पर सराज की फणायें रक्षक की तरह सुशोभित हो रही हैं उन पार्श्वनाथ को नमस्कार करके चरित्र का प्रारंभ होता है। पांचवें पद्य में कमठ नामक तापस को प्रतिबोध देने का उल्लेख सामान्य घटनाओं के साथ-साथ किया गया है। ___ महावीर चरित्रः-प्रथम पद्य में पापरूपी रेणु का नाश करने में वायु सदृश, मोहरूपी कर्दम का क्षालन करने में जल सदृश, कामदेव पर विजय प्राप्त करने वाले जिनेश्वर महावीर को नमस्कार करके उन्हीं का संझेप्न जोवन-वृत कहने की कवि प्रतिज्ञा करता है और अन्तिम पद्य में पुण्यानुबंधिपुण्य प्रदान करने के लिये जिनदेव के चरणों में अञ्जलि प्रस्तुत की गई है। तृतीय पद्य में बतलाया गया है कि भगवान् आदिनाथ के मुख से अपने गौरवमय भविष्य का समाचार पाकर गर्वोत्कुल्ल होने से, मरीचि ने एक कोटाकोटि सागरोपम की भव-वृद्धि किस प्रकार उपार्जित की। इसी कारण कवि ११ वें से. १३ वें पद्य में कहता है कि इस अशुभ बंधन के कारण ही महावीर का जीव ऋषभदत्त ब्राह्मण की पत्नी देवानन्दा की कुक्षि में उत्पन्न हुआ। ८२ दिवस व्यतीत होने पर इन्द्र की आज्ञा से हरिनैगमेषि नामक देव ने गर्भ परिवर्तन कर ज्ञातवंशीय सिद्धार्थ की पत्नी तथा महाराजा चेटक की भगिनी त्रिशला की कुक्षि में संचार किया । ७ वें पद्य में नन्दन राजपि के भव में प्रव्रज्या ग्रहण करने पर एक लाख वर्ष पर्यन्त चारित्र का आपने पालन किया था। इस अवधि में आपने सर्वदा मास-क्षमण की तपस्या की थी। १५ वें और १६ व पद्य में कवि नामकरण का रहस्य बतलाता है । वह कहता है कि आपके उत्पन्न होने से ज्ञात कुल में धन, धान्य आदि समग्रवस्तुओं की वृद्धि हुई इसीलिये १. भोजवंशीय महाराजा उग्रसेन की पुत्री। ११० [ वल्लभ-भारती

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