Book Title: Vallabh Bharti Part 01
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Khartargacchiya Shree Jinrangsuriji Upashray

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Page 216
________________ प्रस्तुत भावारिवारण स्तोत्र टीका की भाषा, शैली तथा विशिष्टता देखते हुए यह निश्चिततया कह सकते हैं कि यह प्रारंभिक कृति होने पर भी व्युत्पत्ति की दृष्टि से उतम और पठनीय है। न केवल गणि चारित्रवर्धन ही देवी पद्मावती के उपासक थे अपितु जैनप्रभीय सारी परम्परा ही पद्मावती को इष्ट मान कर उपासना करती रही है । यही कारण है कि नैषधीय व्याख्या के प्रारंभ में ही चारित्रवर्धन लिखते हैं: पद्मावती भगवती जगती नमस्या भूयाद्भयातिशमिनी जगतो वयस्या । नागाधिराजरमणी रमणीयहास्या, देवैर्नुता मम विकाशिसरोरुहास्या ||२॥ उपाध्याय मेरुसुन्दर युगप्रधान श्रीजिनदत्तसूरि की परम्परा में वाचनाचार्य शीलचन्द्र गणि के प्रशिष्य, वाचक रत्नमूर्ति गण के आप शिष्य थे । आपका सत्ताकाल सोलहवीं शती का पूर्वार्ध है । आप के सम्बन्ध में विशेष ज्ञात नहीं है किन्तु आप के साहित्य को देख कर यह तो निश्चित हो ही जाता है कि लोकभाषा को लक्ष्य में रख कर आपने जो अनुपम साहित्य सेवा की है। वह भाषा साहित्य की दृष्टि से सर्वदा चिरस्मरणीय रहेगी । वाग्भटालंकार और विदग्धमुखमंडन जैसे आलंकारिक ग्रन्थों को भाषा के बालावबोध रूप देने में जिस दक्षता का परिचय दिया है वह स्तुत्य है | आप की प्रणीत निम्न कृतियां उपलब्ध हैं: - १. शीलोपदेशमाला बालावबोध (सं० १५२५ मांडवगढ में श्रीमाल धनराज की अभ्यर्थना से रचित) २. पुष्पमाला बालावबोध (सं० १५२८ पूर्व ) ३. षडावश्यक बालावबोध (सं० १५२५ वै. सु. ५ मांडवगढ संघ की अभ्यर्थना से ) ४. कर्पूर प्रकर बालावबोध (सं० १५३४ से पूर्व ) ५. योगशास्त्र बालावबोध ६. पंचनिर्ग्रन्थी बालावबोध ७. अजितशांति बालावबोध ८. शत्रु ञ्य स्तवन बालावबोध (सं० १५१८ ) ६. भावारिवारण स्तोत्र बालावबोध १०. वृत्तरत्नाकर बालावबोध ११. संबोधसत्तरी बालावबोध १२. श्रावक प्रतिक्रमण बालाववोध १३. कल्पप्रकरण बालावबोध १४. योगप्रकाश बालावबोध १५. अंजनासुन्दरी कथा १६. प्रश्नोत्तर ग्रन्थ १७. भावारिवारण वृत्ति वल्लभ-भारती ] [ १८१

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