Book Title: Vallabh Bharti Part 01
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Khartargacchiya Shree Jinrangsuriji Upashray

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Page 225
________________ ते वि चित्तकइराय भणिज्जहि मुद्धनय ॥२॥ सुकइविसे सियवयणु जु वप्पइराउकइ, सु वि जिणवल्लह पुरउ न पावइ कित्ति कइ। अवरि अणेयविणेयहिं सुकइ पसंसियहि, तक्कव्वामयलुद्धिहिं निच्चु नमंसियहिं ।।६।। जिण कय नाणा चित्तई चित्त हरंति लहु, . तसु दंसणु विणु पुन्निहि कउ लब्भइ दुलहु । सारई बहु थुइ-थुत्तइ चित्तई जेण कय; तसु पयकमलु जि पणमहि ते जण कयसुकय ।।७।। जो सिद्ध'तु वियागइ जिरणवयणुब्भविउ, तसु नामु वि सुणि तूसइ होइ जु इहु भविउ । पारतंतु जिणि पयडिउ विहिविसइहिं कलिउ, ___ सहि ! जसु जसु पसरंतु न केणइ पडिखलिउ ।।८।। 1 x x x x x इय निष्पन्नह दुल्लह सिरिजिणवल्लहिण, तिविड निवेइउ चेइउ सिवसिरिवल्लहिण । उस्सुत्तइ वारंतिरण सुत्त, कहतइण, ... इह नवं व जिणसासणु दंसिउ सुम्मइण ।।४।। इक्कवयणु जिरणवल्लह पहु वयणइ घणई, किं व जंपिवि जणु सक्कइ सक्कु वि जइ मुगइ। तसु पयभत्तह सतह सतह भवभयह होइ अंतु सुनिरुत्त उ तव्वयणुजजयह ॥४१॥ इक्ककालु जसु विज्ज असेस वि वयरिण ठिय, मिच्छदिदि वि वंदहि किंकरभावट्रिय । ठाणि ठाणि विहिपक्खु वि जिण अप्पडिखलिउ, फूड पडिउ निक्कवडिण पर अप्पउ कलिउ ॥४२॥ तसु फ्यपंकयउ पुन्निहि पाविउ जण-भमरु, सुद्धनाण-महुपाणु करतंउ हुइ अमरु । सत्यु हुतु सो जाणइ सत्य पसत्थ सहि, कहि अणुवमु उवमिज्जइ केण समाणु सहि ॥४३॥ बद्धमाणसूरिसीसु जिणेसरसूरिवरु, तासु सीसु जिणचंदजईसरु जुगपवरु । अभयदेउमुणिनाहु नवंगह वित्तिकरु, तसु पयपंकय-भसलु सलक्खणुचरणकर ॥४४॥ सिरिजिणवल्लहु दुल्लहु निःपुन्नहं जणहं, [वल्लभ भारती

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