Book Title: Vallabh Bharti Part 01
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Khartargacchiya Shree Jinrangsuriji Upashray

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Page 224
________________ वल्लभ-भारती ] निच्छम्मं भव्वाणं तं पुरप्र पयडियं यसुकसं गिदुल्लाह जिणवल्ल हसूरिणा सो मह सुहविहिसद्धम्मदाबगो तित्वनायगो य गुरू । तप्पयप उमं पावि जानो जाया जाओ हं ।। १४६ ॥ तममुदिरखं दिन्नमुषं वंदे जिणवल्लहं पहुँ पथ 1 पयत्तेण 1 जेण ।। १४५ ।। नमिवि हरिव्व ।।१५।। कय सावयसंतास सारंग भग्गसंदेहो 1 गय समय दप्पदल रो साइपवरकव्वरसो भीमभवकारणरणम्मी दसियगुरुवयरणरयरणसंदोहो 4 नीसेससत्तगरुम्रो सूरी जिणवल्लहो जबइ ||१६|| उवरिट्ठिम सच्चरणो चउरयोगप्पहास सच्चरणो । असममयराय महणो उड्ढमुहो सहइ जस्स करो ॥१७॥ दंसियनिम्मलनिच्च लदंत गुणोऽगरिणयसावउत्थभयो । कया जेण 'जिरण बल्ल हे गुरुगिरिगरुश्रो सरहु व्व सूरी जिरपवल्ल हो होत्या ।। १८ ।। जुगपवरागमपी उस पारणपीरिणयमरणा भव्वा । गुरुणा तं सव्वहा गंदे ||१६|| - सुगुरुपारतन्त्र्य स्तोत्र पा० १५-११ जिसे सरधम्मह तिहुयण सामियह, पायकमलु ससिनिम्मलु सिवगयगामियह। जहट्ठियगुरणथुइ सिरि जिरणवल्लहह, राम रह गुणगणदुल्लह ॥१॥ जो अपमाणु पमाणइ छद्दरिसरण तराइ, जागइ जिव नियनामु न तिरप बिव कुबि धरणइ । परपरिवाइगइंदविया रणपंच मुहु, इक्कमुहु ? ||२|| तसु गुरणवन्नणु करण कु सक्कइ जो वायस्तु वियाणइ सुहलक्खरनिलउ, सद्द . असद्द. वियारणइ सुवियक्खरपतिलउ । सुच्छंदिर वक्खारणइ छंदु जु सुजइमउ, गुरु लहु लहि पइठावइ नरहिउ बिजयमड़ ॥ ३ ॥ केव्यु उन्बु जु विरय नवरसभर सहिउ, लद्धसिद्धिहि सुकइह सायरु जो महिउ । सुकइ माहुति पसंसहि जे तसु सुहगुरुहु, साहु न मुरणहि श्रयागुय कालियासु कइ श्रासि जु लोइहि मइजिक्सुरगुरुहु ।।४॥ वन्नियइ, नामन्नियइ । ताच नाव जिरणवल्लह कइ अप्पु चित्तु परियाराहि तं पि विसुद्ध न य, करिमि -- गणधर सार्द्ध शतक गा० ८५-१४७ [ x

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